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Need Help: आगरा के अनाथ बच्‍चों ने उठाया सवाल, हमारी मदद क्‍यों नहीं कर रही सरकार

ताजनगरी के 13 अनाथ बच्चे कोरोना वायरस संक्रमण काल में हुए परेशान। इन 13 बच्चों के माता-पिता की मौत कोविड से नहीं बल्कि अन्य बीमारियों या एक्सीडेंट से हुई है। कोविड संक्रमण काल में नहीं मिली कोई प्रशासनिक मदद किसी तरह कर रहे जीवनयापन।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 22 May 2021 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 22 May 2021 08:52 AM (IST)
Need Help: आगरा के अनाथ बच्‍चों ने उठाया सवाल, हमारी मदद क्‍यों नहीं कर रही सरकार
आगरा में 13 ऐसे अनाथ बच्‍चे हैं, जिन्‍हें मदद की दरकार है।

आगरा, प्रभजोत कौर। सरकार ने कोविड के कारण अनाथ हुए बच्चों की जिम्मेदारी लेने की घोषणा की है। इस खबर से ताजनगरी के 13 बच्चे काफी मायूस हुए हैं। इन 13 बच्चों के माता-पिता की मौत कोविड से नहीं बल्कि अन्य बीमारियों या एक्सीडेंट से हुई है। सालों से प्रशासनिक मदद की गुहार लगा रहे यह बच्चे सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि उनके लिए अभी तक कोई घोषणा क्यों नहीं की गई है?

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लोहामंडी के राजनगर क्षेत्र में चार भाई-बहन रहते हैं। लड़का 17 और लड़कियां क्रमश 15, 13 व 11 साल की हैं। बच्चों को याद नहीं है कि पिता का मौत कैसे हुई। मां घरों में झाड़ू-पोछा करती थी, टीबी से 2015 में उसकी मौत हो गई। कुछ समय तक आसपास के लोग मदद करते रहे, लेकिन अब यह बच्चे अपने जीवन के लिए खुद ही संघर्ष कर रहे हैं। लड़का पिछले एक साल से एक जूता फैक्ट्री में काम सीख रहा है लेकिन कोरोना के कारण स्थितियां काफी खराब हैं।

देवरी रोड के नगला जस्सा में तीन बहनें रहती हैं, जिनकी उम्र क्रमश: 16, 14 व 12 साल है। एक छोटा भाई दस साल का है। 2019 में पिता की मौत कैंसर से हुई, उसी साल मां की मौत टीबी से हुई थी। रिश्तेदारों ने लड़कियों की शादी जबरदस्ती करवाना चाही, लेकिन कुछ जागरूक लोगों के कारण शादी रोक दी गई। बच्चों के पिता जूते का काम करते थे। प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान बनवा रहे थे, जो अब अधूरा है। पिता की मौत के बाद राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के अंतर्गत 30 हजार रुपये मिले तो बच्चों का मामा लेकर गायब हो गया। वर्तमान में दो बड़ी लड़कियां अपने घर पर जूते के अपर सिल रही हैं। दोनों मिलकर महीने का हजार रुपये कमा रही हैं।

आगरा कैंट रेलवे कालोनी में एक झोपड़ी में भाई-बहन रहते हैं। लड़के की उम्र 17 व लड़की 15 साल की है। मां घरों में झाड़ू-पोछा और मजदूरी करती थी।दो साल प हले एक ट्रक ने मां को कुचल दिया था। पिता की मौत कई साल पहले ही हो चुकी थी। जिस समय मां की मौत हुई लड़के ने हाईस्कूल पास किया था, लड़की नौंवी में आई थी। समाजसेवियों के आग्रह पर अब इन दोनों बच्चों की फीस स्कूल से माफ हो चुकी है। लड़का कारपेंटर की दुकान पर काम सीख रहा था, पर कोरोना के कारण काम बंद है।

इसी साल आवास विकास कालोनी के सेक्टर सात में तीन बच्चियों के पिता ने उनकी मां की हत्या कर दी थी। दो जुड़वा लड़कियां दस साल की हैं और एक लड़की आठ साल की हैं। पिता को जेल हो गई, बच्चियां अपने नाना के साथ रहने लगीं। नाना बिजली का काम करते थे, जो कोरोना काल में बंद हो गया। बच्चियों के नाना ने अब उनकी परवरिश करने में असमर्थता जताई है।

साथ रहना चाहते हैं भाई-बहन

इन सभी बच्चों ने राजकीय बाल गृह या शिशु सदन जाने से मना कर दिया क्योंकि सभी एक साथ रहना चाहते हैं। उन्हें डर है कि भाई-बहन बिछड़ जाएंगे।

सालों से प्रशासनिक मदद के लिए हर तरफ गुहार लगा रहा हूं, पर स्थायी मदद नहीं हो पाई है। कुछ लोगों के सहयोग से बच्चों की मदद करता रहता हूं पर यह समस्या का स्‍थाई हल नहीं है।

- नरेश पारस, समाजसेवी 


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