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Make Small Strong: मुश्किल समय में घरों तक पहुंचाई दवा, दुआओं के साथ बढ़ाया कारोबार

Make Small Strong काम जमाने के लिए ग्राहकों का विश्वास जीता। कड़ी मेहनत और लगन के साथ ही कम रेट पर दवाएं उपलब्ध कराईं। लॉकडाउन जैसे मुश्किल वक्त में जरूरतमंद तक दवाएं पहुंचाईं। दवाओं के अपने काम को रिटेल से लेकर होल सेल तक पहुंचाया।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 11:37 AM (IST)
Make Small Strong: मुश्किल समय में घरों तक पहुंचाई दवा, दुआओं के साथ बढ़ाया कारोबार
डा. आशीष ब्रह्मभट्ट ने मेडिकल की दुनिया में स्थापित की सूरत ब्रदर्स। फोटो: जागरण

आगरा, जागरण संवाददाता। मेडिकल का काम सिर्फ व्यापार नहीं है, यह मानव सेवा करने का भी बेहतर माध्यम है। इसी सेवा से मेडिकल क्षेत्र की फर्म 'सूरत ब्रदर्स' ने ग्राहकों का विश्वास जीता। उनके साथ रिश्ता कायम किया। जरूरत पडऩे पर घर जाकर दवा भी पहुंचाई। यह कहना है 'सूरत ब्रदर्स' के संचालक डा. आशीष ब्रह्मभट्ट का। पिता डा. हर्षद राय ब्रह्मभट्ट (अब दिवंगत) राधा स्वामी महाराज के आशीर्वाद से कम मुनाफे पर जरूरतमंदों को दवा देकर सेवा भाव के जिस रास्ते पर वह चले थे, उस परंपरा को तो निभा ही रहे हैं, कारोबार को भी ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं।

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दयालबाग रोड पर स्थित 'सूरत ब्रदर्स' नाम से दुकान है। डा. ब्रह्मभटट बताते हैं कि वर्ष 1950 की बात है। उनके पिता स्वामी जी की भक्ति में सूरत से आगरा आ गए थे। कई सालों तक दवाओं के थोक विक्रेता के यहां उन्होंने काम किया। इसके बाद वर्ष 1974 में दयालबाग रोड पर दुकान लेकर होम्योपैथिक दवा का कारोबार शुरू किया। इस काम ने थोड़ी गति पकड़ी तो कुछ महीनों बाद एलोपैथ की दवाएं भी बेचनी शुरू कर दीं। डा. आशीष बताते हैं कि उस जमाने में राजामंडी चौराहा से लेकर दयालबाग के बीच मेडिकल की सिर्फ उनके पिता की ही दुकान थी। बाद में हम भाई सूरत प्रकाश ब्रह्मभट्ट और राजेंद्र कुमार के साथ पिता के काम में हाथ बंटाने लगे। धीरे-धीरे आसपास के शहरों के मेडिकल स्टोरों पर दवा सप्लाई करने लगे। लगभग 13 साल पहले पिता का निधन हो गया। अब हम सभी भाई ही कारोबार संभाल रहे हैं। कई कंपनियों की डिस्ट्रीब्यूटरशिप है।

कम दाम, अच्छी दवा

डा. आशीष बताते हैं कि उनकी प्राथमिकता रही है कि कम दाम पर अच्छी दवाएं उपलब्ध कराएं। क्योंकि ये किसी के जीवन से जुड़ी होती हैं। हमारी थोड़ी सी मदद किसी के बहुत काम आ सकती है। लॉकडाउन में सेवा का यह कार्य बंद नहीं किया। अपने मेडिकल स्टोर के बाहर अपना मोबाइल नंबर चस्पा कर दिया। साथ ही, प्रशासन की अनुमति से होम डिलीवरी भी कराई। कई बार तो रात में भी उन्होंने दवा पहुंचाई।

लॉकडाउन में की मानव सेवा

लॉकडाउन ने जीवन के कई रंग दिखा दिए। परिवार और प्रकृति से जुडऩे का अवसर दिया। बहुत से लोगों के लिए ये मुश्किल भरे दिन भी रहे। खासतौर से उन लोगों के लिए, जिनके यहां कोई बीमार हो गया। तब न चिकित्सक उपलब्ध हो रहे थे और न ही दवाएं मिल रही थीं। स्वामी बाग निवासी डा. आशीष बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमने कालोनी में ही नहीं, आसपास की कालोनियों में भी जरूरत पडऩे पर दवाएं पहुंचाईं। हमने जगह-जगह अपना मोबाइल नंबर चस्पा कर दिया था। इस नंबर पर हमें जिसकी भी सूचना मिलती थी, हमारी टीम उन्हें दवा उपलब्ध करा कर आती थी। चूंकि लॉकडाउन में नगदी का अभाव था, ऐसे में हमने ऑनलाइन पेमेंट स्वीकार किया। वाट्सएप ग्रुप और फेसबुक के माध्यम से भी हम लोगों से जुड़े रहे। डा. आशीष बताते हैं कि कई बार आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निशुल्क भी दवा उपलब्ध कराई। बताते हैं कि हम ग्राहकों को कम से कम रेट पर दवाएं उपलब्ध करा सकें, इसके लिए हम दवा कंपनियों से भी खूब मोलभाव करते हैं। दवा के क्षेत्र में जो भी नये प्रोडक्ट आते हैं, उनके बारे में गूगल पर पूरी जानकारी हासिल करते हैं। उसमें क्या-क्या साल्ट है, जो दूसरी दवाओं में नहीं है। यही वजह है कि कोई भी दवा कंपनी हमें गुमराह नहीं कर पाती।


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