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Wild Bird Day 2020: अलास्‍का और साइबेरिया से जुड़ गया जोधपुर झाल का यह अजब रिश्ता

हजारों किलोमीटर का सफर तय कर आगरा-दिल्‍ली हाईवे पर नेचुरल स्‍पॉट जोधपुर झाल पर आए हैं प्रवासी पक्षी। अलास्‍का के ब्‍लूथ्रोट पक्षी की संख्‍या इस वर्ष सैकड़ा पार कर चुकी है। उत्‍तरी ध्रुव पर बसे देशों में ठंड का कहर शुरू होते ही पक्षी वहां से कर जाते हैं पलायन।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 05:04 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 05:04 PM (IST)
जाेधपुर झाल पर अक्‍टूबर के महीने में आए विदेशी पक्षी।

आगरा, प्रतीक गुप्‍ता। आगरा-दिल्‍ली हाईवे पर बने नेचुरल स्‍पॉट जोधपुर झाल का रिश्‍ता हजारों किमी के फासले पर अमेरिका के अलास्‍का और रूस के साइबेरिया से एक अजब रूप में जुड़ चुका है। इस रिश्‍ते के जुड़ने की वजह इंसान नहीं बल्कि परिंदे हैं। अलास्‍का से आए दुर्लभ प्रजाति के ब्‍लूथ्रोट पक्षियों ने यहां डेरा डाल दिया है। रूस में हो चुकी हाड़ कंपा देने वाली ठंड की शुरुआत इन पक्षियों को जीवन बचाने की जंग में यहां ले आई है।

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मथुरा जिले के फरह ब्लॉक में स्थित जोधपुर झाल प्रवासी पक्षियों के लिए रमणीक स्थल है। अमेरिका के अलास्का व रूस के साइबेरिया जैसे उत्तरी ध्रुव के ठंडे क्षेत्रों से उड़कर कई प्रवासी पक्षी भारत आते हैं। इन्हीं प्रवासी पक्षियों में से एक है, ब्लूथ्रोट पक्षी। इस वर्ष दर्जनों की संख्या में ब्लूथ्रोट ने

जोधपुर झाल पहुंंच कर यहांं के माहौल को रंगीन कर दिया है। जोधपुर झाल के वेटलैंड का विस्तार करने वाले खेतों में धान की फसल में ब्लूथ्रोट किलोल करती दिख रही हैं। यहां धान के खेतों में कीडे मकोड़े के रूप में इन्हें भरपूर भोजन भी मिल रहा है।

हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर आया ब्लूथ्रोट

यह उत्तरी अमेरिका के अलास्का से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके भारत पहुंंचता है। इसी प्रवासी क्रम में यहांं जोधपुर झाल पर इस वर्ष बहुत बडी संख्या में पहुंंच रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि इसका हिन्दी नाम नीलकंठी है। पिछले तीन वर्षों से इनकी उपस्थिति लगातार दर्ज की जा रही है। पिछले वर्ष तक 5-10 की संख्या दिखती थी लेकिन इस वर्ष इनकी संख्या सैकड़ा पार कर सकती है। यह सर्दियों के मौसम में भारत आता है। यह प्रवासी यात्रा शुरू करने से 40-45 दिन पहले अपने प्रजनन काल को पूर्ण करता है। अक्तूबर के अंत तक भारत पहुंंच जाता है। सर्दियों के मौसम में यह प्रायः उत्तरी अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करता है।

ल्‍यूसिनिया स्‍वेसिका है वैज्ञानिक नाम

इसका जीव वैज्ञानिक नाम ल्यूसिनिया स्वेसिका है। यह वन्यजीव संरक्षण की चौथी अनुसूची में दर्ज है। जनसंख्या स्थिर है लेकिन अभी संकटग्रस्त सूची में शामिल नहीं है। इसकी आयु अधिकतम 8 वर्ष तक होती है। ब्लूथ्रोट मार्च के बाद वापस चला जाता है।

गले पर नीले व नारंगी रंग के निशान हैं इसकी मुख्य पहचान

यह आकार में 12-14 सेमी तक होता है और पूंछ को छोड़कर शरीर का ऊपरी भाग भूरे रंग का होता है। गले में प्रायः सफेद, नीली, नारंगी, काली आदि रंग की पट्टियों जैसी संरचना बनी होती है। पूंछ के किनारों में प्रायः लाल रंग के पैच भी दिखायी देते हैं। नर व मादा को गले के रंगों के आधार पर ही पहचाना जाता है। यह पक्षी छोटे गौरैया के समान होता है, जोकि टर्डिडे परिवार से सम्बंधित है। किंतु अब इसे ओल्ड वर्ल्ड फ्लाइकैचर के रूप में मूसिकैपिडे परिवार से सम्बंधित माना जाता है। ब्लू थ्रोट और इसी तरह की छोटी यूरोपीय प्रजातियों को अक्सर चैट कहा जाता है। यह घास के एक छोटे से क्षेत्र जोकि अपने चारों ओर उगने वाली घास से अधिक सघन होती है, में अपना घोंसला बनाती है। मादा 3-4 अंडे देती है।

नर ब्लूथ्रोट गाता है गीत

ब्लूथ्रोट पक्षी स्वरोंं के उच्चारण के लिए प्रसिद्ध है। इनके स्वरोंं के उच्चारण को आवाज़ तथा गीतों दोनों से संदर्भित किया जाता है। इनके द्वारा गाये जाने वाले गीत लम्बे तथा अधिक जटिल होते हैं तथा प्रायः प्रेमालाप और संभोग से जुड़े होते हैं। सामान्य आवाज़ का प्रयोग अपने समूह के सदस्यों को पुकारने हेतु अलार्म के रूप में करते हैं। पक्षी गायन की ध्वनिकी अद्वितीय है, इसमें ब्रोन्कियल ट्यूब और सिरिंक्स की भूमिका मुख्य होती है। इन पक्षियों के गीतों में मानव की तरह विविधता पायी जाती है। वे भी अपने गायन में स्वरों और तालों का प्रयोग अच्छी तरह से करते हैं। इनमें गीतों को याद रखने की क्षमता भी विद्यमान होती है। 


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