शिक्षा प्रणाली में ये सिस्टम हो जाए लागू तो खत्म हो सकती है नंबरों की अंधी दौड़
जागरण विमर्श में निकला निष्कर्ष शिक्षा प्रणाली में ग्रेडिंग सिस्टम ही बेहतर विकल्प। बच्चों पर अनावश्यक बोझ हो सकता है घातक।
आगरा, रवि भारद्वाज। 10वीं और 12वीं के रिजल्ट आकर चुके हैं। एक बोर्ड के परिणाम में 500 में 499 अंक हासिल करने वाले 13 छात्र निकले। हालात यह हो गए हैं कि 90 फीसद से कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चों को तो जैसे कुछ समझा ही नहीं जा रहा। माता-पिता से लेकर रिश्तेदार तक उलाहना दे रहे हैं। नंबरों की यह अंधी होड़ रुकनी चाहिए। स्कूली शिक्षा प्रणाली में ग्रे¨डग सिस्टम ही बेहतर विकल्प है।
यूपी बोर्ड से लेकर सीबीएसई और सीआइएससीई बोर्ड में छात्र-छात्रओं के बीच मची नंबर की होड़, कहां तक ठीक है? इस मसले पर दैनिक जागरण कार्यालय में विमर्श हुआ। दयालबाग विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर अरुण प्रताप सिकरवार ने इस मुद्दे पर राय व्यक्त करते हुए कहा कि गणित और फिजिक्स जैसे विषय में पूर्ण अंक आ जाते हैं, लेकिन हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषय में पूरे अंक आने से स्पष्ट है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में कहीं न कहीं खामी है।
प्रो. सिकरवार ने कहा कि दरअसल, 12वीं तक की शिक्षा व्यवस्था विद्यार्थियों की आइक्यू (इंटेलीजेंस क्वेश्चन) पर ही निर्भर हो गई है। जबकि बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए ईक्यू (इमोशनल क्वेश्चन) और एसक्यू (सोशल क्वेश्चन) को भी शामिल करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि ऐसे सवाल शामिल हों, जिनसे छात्र सामाजिक और संवेगात्मक रूप से भी मजबूत हो। प्रश्नों के जरिए सृजनात्मकता भी देखी जानी चाहिए। तभी भविष्य में देश को एक बेहतर नागरिक मिल सकते हैं।
ग्रेडिंग सिस्टम की पैरोकारी करते हुए उन्होंने कहा कि इससे बच्चों में भी कुछ नंबर कम रहने पर हीन भावना नहीं आती। किसी भी विषय में थ्योरीटिकल और प्रैक्टिकल 50-50 फीसद होना चाहिए, लेकिन प्रैक्टिकल की व्यवस्था निष्पक्ष हो, तभी इसका लाभ मिलेगा।
भविष्य में होंगे कई बदलाव
- डी-स्कूलिंग बढ़ेगा यानि बच्चों को स्कूल भवन तक नहीं जाना होगा।
- सिर्फ उसी विषय पर शिक्षा दी जाएगी, जिसमें छात्र की रुचि हो।
- ऑनलाइन ही होगी पढ़ाई और परीक्षा।
इन पर देना होगा ध्यान
- एक से 12वीं तक नंबर ऑफ सब्जेक्ट कम करने होंगे।
- ग्रुप लर्निग की जगह पर्सनल लर्निग पर ध्यान देना होगा।
- वचरुअल रियलिटी के साथ एजुकेशन दिया जाना जरूरी।
- प्रोजेक्ट बेस पढ़ाई पर जोर दिया जाना चाहिए।
- बच्चों पर किताब का वजन कम किया जाए। पेन और नोटबुक ही जरूरी हो।
एक परीक्षा हो और एनसीईआरटी का बेस हो
सरकार को समान शिक्षा व्यवस्था के लिए अलग-अलग बोर्ड की बजाय पूरे देश में एक ही बोर्ड के जरिए परीक्षा करानी चाहिए। सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही लागू की जानी चाहिए।
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