Mothers Day: खुद तपकर बेटे को बनाया कुंदन, जानिए एक मां के संघर्ष की कहानी
पति की मृत्यु के बाद भी नहीं पड़ी कमजोर बेटे को बनाया ताकत। सालों तक बेटे को दूर रखकर की दिनरात मेहनत बेटा है मरीन इंजीनियर।
आगरा, संदीप शर्मा। महज तीन साल की उम्र में बेटे के सिर से पिता का साया उठ गया। घर के मुखिया के असमय चले जाने से गमों का पहाड़ टूट पड़ा, आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गई। कहीं से उम्मीद की रोशनी नजर न आई, तो सबकुछ खत्म होता लगा। लेकिन मां ने हार नहीं मानी। बेटे को अपनी ताकत मानकर 1200 रुपये महीना की नौकरी शुरू की। दिनरात मेहनत की आग में तपकर बेटे को कुंदन की तरह काबिल बनाया। आज बेटा मर्चेट नेवी में मरीन इंजीनियर है और अब मां के सपनों को पूरा करने को तैयार है।
यह कहानी है नगला पदी निवासी सुमन सिंह की, जिन्होंने लगातार 24 साल तक तपस्या कर बेटे कार्तिकेय सिंह को इस मुकाम पर पहुंचाया। सुमन बताती हैं कि पति सुधीर कुमार सिंह संजय प्लेस स्थित एक कुरियर कंपनी में कार्यरत थे। सब ठीक चल रहा था कि दिसंबर 1992 में अचानक हार्ट अटैक के चलते पति की मृत्यु होने से घर में कोहराम मच गया। परिवार के मुखिया के चले जाने से आर्थिक दुश्वारियों ने चारों तरफ से घेर लिया। मन में कई बार ख्याल आया कि अब जिंदगी नहीं चल पाएगी, लेकिन बेटे को देखकर हिम्मत बंधी। मां सुमन ने हिम्मत कर उसी कुरियर कंपनी में काम शुरू किया, जहां पति तैनात थे। शुरुआत महज 1200 रुपये वेतन से हुई। इसके बाद सुबह से देर शाम तक मेहनत कर पाई-पाई जोड़ी और बेटे को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया।
बहनों ने दिया साथ
सुमन बताती हैं कि उन्होंने बेटे को अपने पास कक्षा तीन तक ही पढ़ाया, क्योंकि वह काम के साथ उसे समय नहीं दे पाती थीं। इसलिए उसे बहन के पास वापी, गुजरात भेज दिया। बेटे की पढ़ाई, गुजरात, बड़ौदा और पुणो में बहनों के पास ही पूरी हुई। बेटे के चले जाने के बाद सुमन दिन-रात काम कर पैसे जोड़ने लगीं और बेटे की फीस का खर्च उठातीं। उसकी अन्य जरूरतों को भी खुद ही पूरा करतीं।
चार साल पहले पूरा हुआ ख्वाब
सालों तक की मेहनत, उस समय मुकम्मल हुई, जब इंजीनियरिंग करने के बाद बेटे को मर्चेट नेवी में नौकरी मिल गई। इसके बाद बेटा उन्हें अब मुंबई, अंधेरी ईस्ट में साथ रखता है। हालांकि इन दिनों वे अपनी बहन के मऊ रोड, खंदारी स्थित आवास में रहने आई हैं।
मां के अरमान करने हैं पूरे
बेटे कार्तिकेय को पता है कि यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं। इसके लिए मां ने कठोर तपस्या की है। बेटे को सफल बनाने में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, इसलिए अब वह मां का विदेश यात्र का सपना पूरा करना चाहते हैं। हालांकि पता बदलने के चलते उनका पासपोर्ट बनना थोड़ा टल रहा है। जल्द ही पासपोर्ट तैयार होते ही वह मां को लेकर कई देशों की यात्र पर जाएंगे।
पिता का सपना किया पूरा
कार्तिकेय बताते हैं कि पिता उन्हें पायलट बनाना चाहते थे, इसलिए वह हमेशा से पायलट बनना चाहते थे। मेहनत भी की। लेकिन मां का अकेला सहारा होने के चलते अन्य रिश्तेदारों ने फॉर्म ही नहीं भरने दिया। उन्हीं दिनों स्कूल में उन्होंने मर्चेट नेवी का विज्ञापन देखा और तैयारी शुरू कर दी। इसके बाद मेहनत और काबिलियत के दम पर आज वह मरीन कंपनी में मरीन इंजीनियर हैं।
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