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कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा

जागरण संवाददाता, आगरा: कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा हो रहा है। अस्थमा पीड़ित बच्चों की संख्य

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 11:00 PM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 11:00 PM (IST)
कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा
कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा

जागरण संवाददाता, आगरा: कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा हो रहा है। अस्थमा पीड़ित बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है, इससे डॉक्टर भी हैरान हैं। मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस पर डॉक्टर मरीजों को बीमारी को लेकर जागरूक करेंगे।

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एसएन में ढ़ाई साल पहले स्टडी की गई। टीबी एंड चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि 5000 बच्चों पर की गई स्टडी में सात फीसद बच्चे अस्थमा से पीडि़त मिले। इसमें शहरी क्षेत्र के बच्चों की संख्या ज्यादा थी। बच्चों में अस्थमा के कारण में कॉकरोच और जंक फूड है। कॉकरोच के सलाइवा, मल और बॉडी पार्ट से बच्चों को एलर्जी होती है। यह लंबे समय तक बने रहने पर बच्चे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं। इसी तरह से जंक फूड में मौजूद प्रिजर्वेटिव भी एलर्जी का बड़ा कारण है। इससे भी अस्थमा हो रहा है। इसके साथ ही घर के अंदर के प्रदूषण में पर्दे, कारपेट, चादर में मौजूद कण भी एलर्जी करते हैं।

सल्फर डाई ऑक्साइड से अस्थमा अटैक

वायु प्रदूषण में सल्फर डाई ऑक्साइड बढ़ रहा है। चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ. संजीव लवानियां ने बताया कि सल्फर डाई ऑक्साइड अस्थमा को उखाड़ने का काम करती है। वायु प्रदूषण बढ़ने से अस्थमा रोगियों को अटैक की आशंका रहती है।

पिछले पांच साल में बढ़े 20 फीसद मरीज

एसएन, जिला अस्पताल सहित निजी क्लीनिक पर पांच साल में अस्थमा रोगियों की संख्या 20 फीसद तक बढ़ गई है। पहले एसएन की ओपीडी में दो से तीन मरीज अस्थमा के आते थे, अब मरीजों की संख्या 20 से 25 तक है।

इन्हेलर है अस्थमा का इलाज

अस्थमा मरीजों में तीन तरह से इलाज किया जाता है, जिससे उन्हें एलर्जी है, उससे बचने से अस्थमा के लक्षण नहीं आते हैं। खानपान और जीवनशैली में सुधार से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। इन मरीजों में इन्हेलर से इलाज होता है। मगर, मरीज इन्हेलर सही तरह से नहीं लेते हैं। उन्हें डर रहता है कि इन्हेलर लेने के बाद कोई और दवा काम नहीं करेगी। यह गलत है। इन्हेलर दवा लेने का माध्यम है, इसमें बहुत कम मात्रा में दवा ली जाती है और वह सीधे फेफड़ों तक पहुंचती है।


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