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क्यों लेना पड़ा भगवान विष्णु को वामन रूप में जन्म

उस समय दैत्यों का राजा बलि हुआ करता था। बलि बड़ा पराक्रमी राजा था। उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उसकी शक्ति के घबराकर सभी देवता भगवान वामन के पास पहुंचे तब भगवान विष्णु ने अदिति और कश्यप के यहाँ जन्म लिया। एक समय वामन रूप में

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 15 Mar 2016 12:27 PM (IST)Updated: Wed, 16 Mar 2016 09:51 AM (IST)

दैत्यों का राजा बलि बड़ा पराक्रमी राजा था। उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। उसकी शक्ति के घबराकर सभी देवता भगवान वामन के पास पहुंचे तब भगवान विष्णु ने अदिति और कश्यप के यहाँ जन्म लिया। एक समय वामन रूप में विराजमान भगवान विष्णु राजा बलि के यहाँ पहुचे उस समय राजा बलि यज्ञ कर रहा थे। बलि से उन्होंने कहा राजा मुझे दान दीजिए। बलि ने कहा-मांग लीजिए। वामन ने कहा तीन पग मुझे आपसे धरती चाहिए। दैत्यगुरु भगवान की महिमा जान गए। उन्होंने बलि को दान का संकल्प लेने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने कहा - गुरुजी ये क्या बात कर रहे हैं आप। यदि ये भगवान हैं तो भी मैं इन्हें खाली हाथ नहीं जाने दे सकता। बलि ने संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने अपने विराट स्वरूप से एक पग में बलि का राज्य नाप लिया, एक पैर से स्वर्ग का राज नाप लिया। बलि के पास कुछ भी नहीं बचा। तब भगवान ने कहा तीसरा पग कहां रखूं। बलि ने कहा- -मेरे मस्तक पर रख दीजिए। जैसे ही भगवान ने उसके ऊपर पग धरा राजा बलि पाताल में चले गए। भगवान ने बलि को पाताल का राजा बना दिया।

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सतयुग में दैत्यराज प्रह्लाद के पोत्र बलि ने स्वर्ग में अधिकार कर लिया था। सभी देवता इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओ से कहा की में स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर तुम्हे स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में जन्म लिया। इधर दैत्यराज बलि ने अपने गुरु शुक्रचार्य और मुनियो के साथ दीर्घकाल तक चलने वाले यज्ञ का आयोजन किया।

बलि के इस महायज्ञ में ब्रह्मचारी वामन जी भी गए। वे अपनी मुस्कान से सब लोगो के मन मोह लेते थे। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपने तपो बल से वामन के रूप में अवतरित भगवान विष्णु को पहचान लिया। उन्होंने बलि को बताया की तुम्हारी राजलक्ष्मी का अपरहण करने भगवान विष्णु वामनरूपी अवतार में आये है। गुरुदेव की बातो को सुन कर राजा बलि ने कहा – हे गुरुदेव आप क्यों धर्म विरोधी वचन कह रहे है, भगवान विष्णु स्वयं मुझ से दान मांगने आये है इस से बढ़कर और क्या हो सकता है। मैं तो केवल भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए यह यज्ञ कर रहा हुँ। यदि भगवान विष्णु स्वयं पधारे है तो में कृतार्थ हो गया।

तभी वामनजी बलि के यज्ञशाला में पधारे, उन्हें देख राजा बलि अपने दोनों हाथ जोड़ के उनके सामने खड़े हो गए और कहा, हे प्रभु मुझे अपनी सेवा का अवसर दीजिये।तब वामन भगवान ने उनसे तीन पग भूमि मांगी और कहा भूमिदान का महात्म्य महान है। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला समझ गए और उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन फिर भी बलि ने भूमि दान के संकल्प के लिए कलश उठाया परन्तु गुरु शुक्राचार्य उस कलश में घुस गए। भगवान विष्णु यह जान गए की गुरु शुक्राचार्य कलश में घुसकर जल की धारा को रोक रहे है .अतः उन्होंने कुश के अग्र भाग को कलश के मुख में घुसेड़ दिया जिसने गुरु शुक्राचार्य की एक आँख को नष्ट कर दिया। पीड़ा से व्याकुल होकर गुरु शुक्राचार्य उस कलश से बाहर निकले।

तब बलिं ने तीन पग दान का संकल्प लिया। भगवान विष्णु ने विशाल रूप धारण कर पहले एक पग पूरी धरती को नाप लिया तथा अपने दूसरे पग में उन्होंने पुरे स्वर्गलोक को नापा। जब तीसरे पग के रखने के लिए कोई जगह नही बची तो बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। वामन भगवान ने उन्हें भय दिखाया की यदि तुमने अपना संकल्प पूरा नही किया तो ये अधर्म होगा। तब तीसरे पग के लिए अपने आप को समर्पित करते हुए राजा बलि ने अपना सर उनके पग के निचे रख लिया। वामन भगवान के तीसरा पग रखते ही बलि पाताललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता को देख वामनरूप भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बना दिया और इस तरह भगवान विष्णु ने इंद्र को स्वर्गलोक सोपा !

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