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सावन व चातुर्मास की क्या हैं मान्यताएं, परंपराएं और उनके नियम और फायदे

सावन और चातुर्मास को न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरू पूर्णिमा से लेकर दशहरे तक सारे त्योहार इसी समय में आते हैं। इसके साथ ही सारे-व्रत उपवासों भी इन्हीं दिनों में आते हैं। बारिश होने के कारण प्राकृतिक खूबसूरती भी

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2015 11:51 AM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2015 12:18 PM (IST)

सावन और चातुर्मास को न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरू पूर्णिमा से लेकर दशहरे तक सारे त्योहार इसी समय में आते हैं। इसके साथ ही सारे-व्रत उपवासों भी इन्हीं दिनों में आते हैं। बारिश होने के कारण प्राकृतिक खूबसूरती भी अपने चरम पर होती है जो स्वास्थ्य की रक्षा या स्टेमिना के मेकओवर के लिए बेहतर समय है। 'सावन बियारी जब-तब कीजै, भादो बाको नाम न लीजै'। या फिर 'निन्ने मुंह पानी पिए, दूध बियारी जो करें, तिन घर वैद्य न जाएं'। अब इन्हें कहावतें कह लीजिए या फिर बड़े बुजुर्गों का अनुभव। लेकिन इनमें कहीं न कहीं स्वस्थ रहने का मूल रहस्य छिपा हुआ है। सावन और चातुर्मास के शुरू होते ही कुछ नियमों के पालन की बात पुराणों, आयुर्वेद और अन्य धार्मिक किताबों में कही गईं हैं।

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भले ही लोग इन्हें धर्म समझकर पालन करते हों लेकिन इन परंपराओं में विज्ञान छिपा हुआ है। जो बदलते मौसम में बदली परंपराओं में शामिल होकर फिट रहने के उपाय बताता है। यह कहा जा सकता है कि इन धार्मिक परंपराओं में विज्ञान तो पहले से छिपा हुआ है बस जरूरत है तो उसे समझने की।

क्या हैं मान्यताएं, परंपराएं और उनके नियम-

- सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठना।

- दिन में शयन से दूर रहना।

- अल्पाहार या फलाहारी पोषण पर निर्भर रहना।

- गरिष्ठ या भारी भोजन से परहेज करना।

- उपवास- व्रत करना।

- रात्रि में भोजन न करके शाम को ही भोजन करना।

- जैन धर्म के अनुसार बारिश के दिनों में रात के समय कीड़े-मकोड़ों, सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए रात में भोजन नहीं किया जाना चाहिए।

क्यों बने हैं नियम

जानकार बताते हैं कि धार्मिक परंपराएं और रीति-रिवाज प्राचीन काल के लोगों के अनुभव व ज्ञान से ही बनाए गए हैं। हर परंपरा में कुछ न कुछ अच्छाई और विज्ञान शामिल होता है।

क्या कहता है विज्ञान

आयुर्वेद में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय में ऋतु चर्या यानी मौसम के अनुसार आचरण करने की बात कही गई है। सावन और खासकर भादौं में गरिष्ठ भोजन का त्याग, दिन में सोना, और रात के समय भोजन न करने की बात कही गई है। जो कि जैन और हिंदु धर्म में धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं के रूप में भी माने जाते हैं। और लोग बड़ी आस्था के साथ इनका पालन भी करते हैं।

वात, पित्त और कफ की प्रवृत्ति

आयुर्वेद मानता है कि शरीर में कोई भी बीमारी वात, पित्त और कफ का अनुपात कम-ज्यादा होने से होती है। बारिश यानी सावन या चातुर्मास में शरीर में वात, पित्त और कफ की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। यही वजह है कि शरीर में कई गंभीर बीमारियां जैसे-मंदाग्नि का होना, खाना न पचना, उल्टी-दस्त होना, गैस-एसीडिटी का होना बढ़ जाता है। यदि इन तीन तत्वों को नियंत्रित रखा जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है। यही वजह है कि सावन या चातुर्मास में व्रत-उपवास और नियमित आहार-विहार की बात कही गई है।

ये कहता है आयुर्वेद और धर्म-

- आयुर्वेद- जठराग्नि अर्थात पेट की पाचन क्रिया को दुरुस्त करने के लिए हल्का-सुपाच्य भोजन करें। लंघन (खाली पेट रहना) करके विकारों को शांत करें।

धर्म- सही समय पर व्रत-उपवास करने से लंघन होता है और शरीर को अंदर जमा रसायन और हर तरह की गंदगी को साफ करने का मौका मिलता है, जिससे विकार अपने आप दूर भाग जाते हैं।

आयुर्वेद- खाना पचने में शरीर का पित्त सहायक होता है जो दिन में सक्रिय रहता है। रात के समय कफ की मात्रा अधिक रहती है। जो खाना पचाने में मदद नहीं करता। यही वजह है कि रात्रि के समय भोजन करने से वह शीघ्रता से पचता नहीं।

धर्म- चातुर्मास में रात के समय भोजन न करके, शाम होने के पहले भोजन करें।

आयुर्वेद- सुबह जल्दी उठने में उस वक्त शरीर में कफ की अधिकता रहती है। जो कोष्ठ शुद्घि (मल त्याग) की क्रिया को आसान बना देता है। सुबह की ताजा हवा फेफड़ों में शुद्घ प्राणवायु पहुंचाती है। सुबह जल्दी उठने वालों को श्वांस संबंधी रोग इसीलिए नहीं होते हैं।

धर्म- धर्म कहता है कि रात में जल्दी सोएं और सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठें।

आयुर्वेद- बारिश में झूला झूलने से गहरी सांस लेने वा सांस छोड़ने की क्रिया होती है। जो स्वाभाविक तौर पर प्राणायाम के समान है। फेफड़ों का शुद्घिकरण होता है।

- धर्म- सावन में झूले झूलने का महत्व माना गया है।

- आयुर्वेद- मेहंदी पित्त नाशक होती है और हाथों व पैरों पर लगाने से एक लेयर बना देती है। जो त्वचा को सीधे पानी के संपर्क में आने से बचाती है। जिससे हाथ-पैर की अंगुलियों के बीच कंदरी(एक तरह की गलन ) नहीं हो पाती।

धर्म- सावन माह में मेहंदी लगाना काफी पुरानी पारंपरा है। अक्सर धार्मिक अवसरों पर मेहंदी लगाने का महत्व है।

धर्म वही जो धारण किया जाए

धर्म में कही गई बातें अच्छाई के लिए होती है, इसलिए धारण करने योग्य हैं। चातुर्मास व सावन में जो परंपराएं व मान्यताएं हैं, वे असल में शरीर और मन को स्वस्थ्य रखने के उपाय हैं। आयुर्वेद में इसके लिए ऋतुचर्या का उल्लेख है। इन दिनों में पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। शरीर में पित्त का संचय होता है। इससे पहले उमस वाली गर्मी के कारण वात दोष का प्रकोप होता है। जो आमवात, संधिवात (हाथ पैर में दर्द) मंदग्नि (पाचन क्षीण होना), अपचन, वमन, अतिसार जैसी व्याधियों को बढ़ता है। जो व्रत-उपवास और हल्के आहार के जरिए ही ठीक होती हैं। हल्का भोजन करने से पाचन क्रिया सुचारू हो जाती है। यही वजह है कि सावन में सोमवार के व्रत या पूरे माह एक वक्त भोजन कर अर्ध व्रत किए जाते हैं ताकि हल्का भोजन किया जा सके। - वैद्यरत्न, महेदत्त शर्मा

भक्ति भाव के साथ नियमों का पालन

आयुर्वेद के अनुसार चातुर्मास (बारिश) के दौरान पाचन क्रिया कमजोर होती है। इसलिए व्रत-उपवास व हल्का भोजन करने, रात में भोजन न करने की मान्यता हैं। सुबह जल्दी उठना ईश्वर आराधना, ध्यान व एकाग्रता के लिए यह सर्वोत्तम है। कुछ व्यवहारिक कारण भी हैं, जैसे पूर्व में परिवहन के समुचित साधन और सड़कें नहीं थे, नदियों में उफान, तूफान, बारिश और कींचड़ के कारण यात्रा करना कठिन होता था। इस मौसम में साधु-सन्यासी यात्राएं रद्द कर किसी एक स्थान पर ठहरकर ईश्वर आराधना में समय बिताते थे। तभी से चातुर्मास के दौरान धार्मिक आयोजनों की शुरुआत हुई। पहले न बिजली थी और न ही भौतक सुख-साधन। केवल खेती ही मुख्य कारोबार था, जिसमें सारा काम दिन में होता था। रात के समय में लोग मिलकर भजन-कीर्तन करते थे। भक्ति के साथ ही यह मनोरंजन का भी साधन हुआ करता था। - नृसिंह पीठाधीश्वर डॉ.श्यामदास महाराज

दोष निवारक हैं उबला पानी और स्निग्ध पदार्थ

आयुर्वेद में हर मौसम की तरह सावन व चातुर्मास के लिए भी ऋतुचर्या है। पाचन क्रिया को ठीक रखने के लिए हल्का भोजन करना चाहिए। इससे वात,पित्त और कफ का शमन होता है। बारिश में दूषित जल के कारण इसे उबालकर पीने और स्निग्ध पदार्थों के सेवन की बात कही गई है जिससे दोष शांत रहते हैं। शहद का नियमित सेवन भी अच्छा माना गया है।

आयुर्वेद में हृदय को कमल की भांति माना गया है जो दिन में सक्रिय रहता है और रात में अपेक्षाकृत शांत। रात के समय पाचन किया क्षीण हो जाती है, इसलिए रात में भोजन करने की मनाही है। दिन में सोने से पित्त भी बढ़ जाता है। - डॉ.अश्विनी विद्यार्थी, रीडर संहिता सिद्घांत, डॉ. ऋतु सोनी, रीडर संहित,शासकीय आयुर्वेद कॉलेज

पूरी तरह विज्ञान पर आधारित है जैन पंथ

जैन पंथ में जो भी नियम व पथ्य हैं वे सभी विज्ञान पर आधारित है। रात को भोजन न करना पाचन क्रिया को ठीक रखता है। बारिश में रात को कीट पतंगे की हत्या के पाप से बचने के लिए भोजन वर्जित है। जो कई तरह के कीट इन्फेक्शन से भी बचाता है। साइंस कहत है कि बारिश में दिनों के अंदर आटे वगैरह में जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए जैन अनुयायियों को रखे हुए आटा आटे से बना भोजन वर्जित है। इससे जीव हत्या नहीं होती। पानी को छानने से भी बारिश के संक्रमण से बचा जा सकता है। यह सब नियम कायदे ही चातुर्मास का हिस्सा है। - विधानाचारी, ब्रह्मचारी त्रिलोक जैन


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