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माना जाता है कि उनके लिए काली कोई देवी नहीं वह एक जीवित हकीकत थीं

वह मां काली की मूर्ति के सामने एक बच्चे की तरह व्यवहार करते थे,जो सिर्फ अपनी मां को चाहता था। इससे बहस करना संभव नहीं था। रामकृष्ण काली को समर्पित थे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 27 Mar 2017 02:53 PM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 04:55 PM (IST)
माना जाता है कि उनके लिए काली कोई देवी नहीं वह एक जीवित हकीकत थीं
माना जाता है कि उनके लिए काली कोई देवी नहीं वह एक जीवित हकीकत थीं
रामकृष्ण परमहंस काली के परम भक्त  थे। माना जाता है कि उनके लिए काली कोई देवी नहीं थीं, वह एक जीवित हकीकत थीं। काली उनके हाथों से खाती थीं, उनके बुलाने पर आती थीं और उन्हें आनंदविभोर कर देती थीं। उन्हें कोई मतिभ्रम नहीं था, बल्कि उनके लिए यह सच्ची घटना होती थी।
जब वह उनके भीतर प्रबल होतीं, तो वह आनंदविभोर हो जाते और नाचना-गाना शुरू कर देते। जब वह थोड़े मंद होते और काली से उनका संपर्क टूट जाता, तो वह किसी शिशु की तरह रोना शुरू कर देते। रामकृष्ण की चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी। इस स्थिति में होना किसी भी इंसान के लिए बहुत ही सुखद होता है। हालांकि रामकृष्ण का शरीर, मन और भावनाएं परमानंद से सराबोर थे, मगर उनका अस्तित्व इस परमानंद से परे जाने के लिए बेकरार था। उनके अंदर कहीं न कहीं एक जागरूकता थी कि यह परमानंद अपने आप में एक बंधन है। रामकृष्ण कहते थे कि  यदि आपने मां स्वरूपा काली को पा लिया, तो समझें सर्वस्व पा लिया। ज्ञान का अकूत भंडार पा लिया। वह मां काली की मूर्ति के सामने एक बच्चे की तरह व्यवहार करते थे,जो सिर्फ अपनी मां को चाहता था। इससे बहस करना संभव नहीं था। रामकृष्ण काली को समर्पित थे। 

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