अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्र में इसका विशेष महत्व है
यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के पात्र बनते है |
जब जब इस धरती पर पाप असहनीय हो जाता है तब तब देवी देवता के अवतरण के रूप में कोई महा शक्ति इस धरती पर अवतार लेकर उस पाप का नाश करती है | महाशक्तिशाली और इच्चापुरक काव्य दुर्गा सप्तसती से जानते है की किस तरह माँ दुर्गा का जन्म हुआ और किस तरह उन्होंने बार बार पृथ्वी पर दैत्यों के पाप को ख़त्म किया | दुर्गा सप्तशती पाठ में माँ जगदम्बे की महिमा का अनुपम तरीके से वर्णित किया गया है | माँ भगवती की महिमा का गान करने वाले यह धर्म सरिता अपने अन्दर सभी सुखो को पाने के महा गुप्त साधना समेटे हुए है |
दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व
तांत्रिक साधना , गुप्त साधना मन्त्र साधना और अन्य प्रकार के आराधना के पथ को सुचारू रूप से बताती है | इस काव्य का पाठ विशेष रूप से नवरात्रों में किया जाता है और अचूक फल देने वाला होता है | दूर्गा सप्तशती पाठ में 13 अध्याय है | पाठ करने वाला , पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के पात्र बनते है | नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा के लिए यह सर्वोपरि किताब है | इसमे माँ दुर्गा के द्वारा लिए गये अवतारों की भी जानकारी प्राप्त होती है |
दूर्गा सप्तशती अध्याय 1 मधु कैटभ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 2 देवताओ के तेज से माँ दुर्गा का अवतरण और महिषासुर सेना का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 3 महिषासुर और उसके सेनापति का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 4 इन्द्राणी देवताओ के द्वारा माँ की स्तुति
दूर्गा सप्तशती अध्याय 5 देवताओ के द्वारा माँ की स्तुति और चन्द मुंड द्वारा शुम्भ के सामने देवी की सुन्दरता का वर्तांत
दूर्गा सप्तशती अध्याय 6 धूम्रलोचन वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 7 चण्ड मुण्ड वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 8 रक्तबीज वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 9 -10 निशुम्भ शुम्भ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 11 देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और देवी के द्वारा देवताओ को वरदान
दूर्गा सप्तशती अध्याय 12 देवी चरित्र के पाठ की महिमा और फल
दूर्गा सप्तशती अध्याय 13 सुरथ और वैश्यको देवी का वरदान
नवरात्र के दौरान माता को प्रसन्न करने के लिए साधक विभिन्न प्रकार के पूजन करते हैं जिनसे माता प्रसन्न उन्हें अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। दुर्गा सप्तशती में (700) सात सौ प्रयोग है जो इस प्रकार है:- मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के दो सौ(200), स्तंभन के दो सौ(200), विद्वेषण के साठ(60) और वशीकरण के साठ(60)। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि
– सर्वप्रथम साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए।
– तत्पश्चात वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए।
– माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें।
– शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।
– इसके बाद प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें तथा मंत्रों से संकल्प लें।
– देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें।
– फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।
– इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।
-इसके जप के पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए।
तत्पश्चात पूरे ध्यान के साथ माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं। दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ | जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम शप्तशती है | जो कोई भी इस ग्रन्थ का अवलोकन एवं पाठ करेगा “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होगी |
नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है।
‘ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’
शीघ्र विवाह के लिए।
क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला पर।
ओंम ऐं हृी क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
परेशानियों के अन्त के लिए।
क्लीं हृीं ऐं चामुण्डायै विच्चे।