नई दिल्ली, डा. विजय अग्रवाल | New Year 2023 Special: गीता में भगवान कृष्ण ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण, अत्यंत विचारणीय तथा मनोवैज्ञानिक रूप से औषधीय बात कही है। वे अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा जीर्ण-शीर्ण शरीर को त्यागकर नवीन देह धारण करता है। यदि आत्मा जैसा अविनाशी तत्व नवीनता की आवश्यकता से परे नहीं है, तो फिर इस विनाशी भौतिक शरीर के लिए नयेपन की अनिवार्यता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कृष्ण के इस कथन से सुख की प्राप्ति का यह एक सरल-सा सूत्र तो हमारे हाथ आता ही है कि 'नवीनतम अपने आप में ही सुखद होता है।' चूंकि जड़ता से, स्थिरता से ऊब की दुर्गंध उठने लगती है, इसलिए जरूरी है कि चेतन हुआ जाए, गतिशील हुआ जाए। इससे कुछ तो बदलेगा और यह बदलाव सुख देगा। इसी भाव को कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला' ने मां सरस्वती से प्रार्थना करते हुए इन शब्दों में व्यक्त किया है :

नव गति, नव लय, ताल छंद नव

नवल कंठ नव जलद मंद्र रव

नव नभ के नव विहग वृंद को

नव पर नव स्वर दे।

वर दे वीणा वादिनी वर दे।

हमारे पास इस नवीनता को धारण करने के दो मुख्य उपाय होते हैं। पहला है- दैनिक जीवन में निरंतर उपलब्ध हो रही वस्तुओं एवं घटनाओं में नवीनता का एहसास करना। सूर्य प्रतिदिन निकल रहा है, डूब रहा है। आकाश और धरती स्थायी रूप से फैले हुए हैं। जीवन की न जाने कितनी क्रियाएं और घटनाएं प्रतिदिन एक जैसी ही घटित होती रहती हैं। ये सब हमारे जीवन-काल के सबसे बड़े टुकड़े को घेरे रहती हैं। इन्हें बदलने की अधिक संभावना भी नहीं होती। ऐसे में हम ऐसा कुछ क्या करें कि रोज-रोज के इन बासी पलों में टटकापन भर दें कि ये बासी फूल ताजे होकर महक-महक उठें। इसका उपाय है। आप जानते हैं कि हमारी यह जिंदगी पल-पल बदल रही है, लेकिन यह बदलाव इतना सूक्ष्म होता है कि हमारी पकड़ में नहीं आता। यहां आपको चेतना के स्तर पर बस करना इतना है कि इस परिवर्तन के दर्शन को स्वीकार करके उसे महसूस करना है। सूरज, चांद, सितारे, लोग, काम सब कुछ नया और सुखद लगने लगेगा। क्या आपने गीत गाता चल फिल्म का यह गीत सुना है- मैं वही, दर्पण वही, न जाने ये क्या हो गया कि सब कुछ लागे नया-नया...। कभी न कभी आपको भी इस तरह की प्रतीति अवश्य हुई होगी। यदि आप प्रतिदिन, कभी भी, एक बार भी, एक पल के लिए ही सही, इस तरह के एहसास को ला सकें, तो यह आपके पूरे दिन को सुख की अनुभूति से भर देगा।

दरअसल, सुख भौतिक वस्तुओं का मोहताज नहीं होता है। यह इन भौतिक वस्तुओं के प्रति हमारे एहसास पर आधारित होता है, फिर चाहे वे कितने भी पुराने हों या कि रोजाना संपर्क में आने वाले हों। आप खुद ही सोचें कि सही मायने में आप जो नये वर्ष का जश्न मनाएंगे, उसमें तारीख के नया होने के अतिरिक्त और क्या नया है? ऐसा तो रोज ही होता है, फिर चाहे वह दिन, सप्ताह और माह के रूप में ही क्यों न हो। यह एक जनवरी के प्रति मात्र आपका एहसास ही है, जो इसे 'नव' बना रहा है। यदि 'नव वर्ष' हो सकता है, तो 'नव दिवस' क्यों नहीं हो सकता।

अब मैं आता हूं दूसरे उपाय पर। इसके लिए मैं आपके सामने दो स्थितियां प्रस्तुत कर रहा हूं। इन पर विचार करके इनसे जुड़े प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने की थोड़ी माथापच्ची करें। स्थिति नंबर एक-कुएं में पानी भरा हुआ है। मैं उस कुएं से पानी निकालकर अपने घर में लाया था। अगले दिन जब मैं उसी पानी का इस्तेमाल सुबह पूजा के लिए कर रहा था, तब मेरी दादी ने कहा था 'नहीं, पूजा के लिए कुएं से ताजा पानी लाओ। यह बासी हो गया है।' जबकि कुएं का पानी तो न जाने कितने दिनों का बासी पानी है। ऐसा क्यों? स्थिति नंबर दो- आपके पैर का नंबर 11 है, लेकिन किसी ने आपको जो जूता उपहार में दिया, वह नौ नंबर का है। किंतु है वह बहुत महंगा। पहनने पर वह बुरी तरह से काटता है। अब आप इस जूते का क्या करेंगे?

पहले प्रश्न का उत्तर है कि कुएं का पानी पुराना होने के बावजूद इसलिए हमेशा ताजा बना रहता है, क्योंकि वह अपने मूल स्रोत से जुड़ा रहता है। हमारी संस्कृति हमारी चेतना का मूल स्रोत है। चूंकि लोक मानस इससे जुड़ा रहता है, इसलिए वह हमेशा नये के सुख में रहता है। इस स्रोत से कटा होने के कारण नगरीय जीवन बासी और ऊबा-ऊबा बन गया है। मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर है- 'संकीर्णता'। यदि संकीर्ण जूता किसी के पैर को काट सकता है, तो संकीर्ण सोच के बारे में आपके क्या विचार हैं? हमारा दर्शन 'आ नो भद्रा कृतवो यंतु विश्वतः' का दर्शन रहा है। अच्छे विचार चारों और से आने दो। यदि कमरे में लगातार हवा और रौशनी आती रहेगी, तो कमरे की ताजगी बनी रहेगी। यह बात हमारी चेतना के साथ भी है। आइए, कुछ इसी तरह के प्रयासों के साथ वर्ष 2023 की शुरुआत करते हैं।

Edited By: Shantanoo Mishra