नई दिल्ली, Mauni Amavasya 2023 Special, आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता योगगुरु श्री श्री रविशंकर: कहा जाता है कि जब बुद्ध को ज्ञान की उपलब्धि हुई, तो वह पूरे एक सप्ताह तक मौन रहे। उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। पौराणिक कथा कहती है कि इससे स्वर्ग के सभी देवदूत भयभीत हो गये। वे जानते थे कि सहस्राब्दी में केवल एक बार ही कोई व्यक्ति बुद्ध जैसा खिलता है और अब वह मौन था! तब स्वर्गदूतों ने उनसे कुछ कहने का अनुरोध किया। बुद्ध ने कहा, 'जो जानते हैं, वे मेरे कहे बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते, वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे। नेत्रहीन के लिए प्रकाश का कोई भी वर्णन उपयोगी नहीं है। जिन लोगों ने जीवन के अमृत का स्वाद नहीं चखा है, उनसे बात करने का कोई अर्थ नहीं है और इसलिए मैं मौन हूं। कोई इतना अंतरंग और व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त भी कैसे कर सकता है? शब्द इसे व्यक्त नहीं कर सकते और जैसा कि अतीत में कई शास्त्रों ने प्रकट किया है, शब्द वहीं समाप्त हो जाते हैं, जहां सत्य आरंभ होता है।'

स्वर्गदूतों ने कहा, 'आप जो कहते हैं, वह उचित है। लेकिन उनके बारे में विचार करें, जो न तो पूरी तरह से प्रबुद्ध हैं और न ही पूरी तरह से अज्ञानी हैं। उनके लिए चंद शब्द एक गति प्रदान करेंगे। कृपया उनके लिए बोलें। आपका हर शब्द उस मौन को उत्पन्न करेगा।'

शब्दों का उद्देश्य मौन उत्पन्न करना है। यदि शब्द अधिक शोर मचाते हैं, तो वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं। बुद्ध के शब्द अवश्य ही मौन निर्मित करेंगे, क्योंकि बुद्ध मौन की अभिव्यक्ति हैं। मौन जीवन का स्रोत है और रोगों का इलाज है। जब लोगों को क्रोध आता है तो वे चुप्पी साध लेते हैं। पहले वे चीखते हैं और फिर सन्नाटा पसर जाता है। जब कोई उदास होता है, तो वह अकेले रहना और एकांत में, खुद में लौटना चाहता है। इसी तरह लज्जाजनक स्थिति आने पर मौन एक सहारा है। अगर कोई बुद्धिमान है, तो वहां भी मौन है। अपने मस्तिष्क में चल रही आवाजों-ध्वनियों को देखें। ये किस बारे में हैं? धन, यश, पहचान, पूर्णता, रिश्ते आदि का शोर किसी न किसी कारण से है, जबकि मौन अकारण है। मौन आधार है; शोर सतह पर है। आरंभ से ही बुद्ध बहुत संतुष्ट जीवन जीते थे। वह जिस क्षण चाहते थे, कोई भी सुख उनके चरणों में उपस्थित हो जाता था।

एक दिन उन्होंने कहा, 'मैं जाकर देखना चाहता हूं कि दुनिया क्या है।' बुद्ध अपने महल, पत्नी और पुत्र को छोड़कर अकेले ही सत्य की खोज में निकल पड़े। मौन जितना दृढ़ होगा, ऐसे मौन से उठने वाले प्रश्न उतने ही प्रबल होंगे। कुछ भी उन्हें रोक नहीं सका। वह जानते थे कि वह दिन के प्रकाश में अधिक दूर नहीं जा पाएंगे, इसलिए वह रात्रि में चुपचाप चले गये और कई वर्षों तक उनकी खोज जारी रही। उन्होंने वह सब किया, जो लोग उन्हें करने के लिए कहते थे। वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे, उपवास करते थे और चार सत्यों की खोज करने से पहले वह कई रास्तों पर चले थे। एक ऐसे काल में, जब इतनी समृद्धि थी, बुद्ध ने अपने मुख्य शिष्यों को एक भिक्षापात्र दिया और कहा कि जाकर भिक्षा मांगो!

उन्होंने राजाओं से उनके राजकीय वस्त्र उतरवा दिए और उनके हाथ में कटोरा दे दिया! ऐसा नहीं था कि उन्हें भोजन की आवश्यकता थी, लेकिन वह उन्हें 'कुछ' से 'कुछ नहीं' बनने का पाठ पढ़ाना चाहते थे। आप कोई नहीं हैं। आप इस ब्रह्मांड में नगण्य हैं। जब उस समय के राजा-महाराजाओं को भीख मांगने को कहा गया तो वे करुणा के अवतार बन गए। पहला सत्य यह है कि संसार में दुख है। जीवन में दो ही संभावनाएं हैं - एक तो, अपने आसपास की दुनिया को देखना और दूसरों के दुखों से जानना। दूसरी है, इसका स्वयं अनुभव करना और यह जानना कि यह दुख है। दूसरा सत्य यह है कि हर दुख का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। आप बिना किसी कारण के प्रसन्न रह सकते हैं, लेकिन दुख का कोई कारण होता है।

तीसरा सत्य है कि दुख को दूर करना संभव है, और चौथा सत्य है कि दुख से बाहर निकलने का मार्ग है। अपने वास्तविक स्वरूप का निरीक्षण करें। आपका वास्तविक स्वरूप क्या है? यह शांति, करुणा, प्रेम, मित्रता और आनंद है और यह मौन ही है, जो इन सबको जन्म देता है। मौन उदासी, ग्लानि और दुख को निगल जाता है और आनंद, करुणा और प्रेम को जन्म देता है। इस प्रकार हर कोई दुख के सागर को पार कर सकता है।

Edited By: Shivani Singh