नई दिल्ली, स्वामी चिदानंद सरस्वती | Magh Purnima 2023: भारतीय संस्कृति का मूल सनातन संस्कृति और शास्त्रों में समाहित है। हमारे शास्त्रों में जड़, चेतन, प्रकृति, नदी, पर्वत, ब्रह्मांड, नक्षत्र और समस्त तारामंडल का ज्ञान समाहित है। नक्षत्रों के नाम पर हमारे अनेक तीर्थ, पर्व और त्योहारों का नामकरण हुआ है, जैसे मघा नक्षत्र के नाम पर 'माघ पूर्णिमा' की उत्पत्ति हुई। पुराणों के अनुसार माघ में देवता व पितरगण सदृश होते हैं, इसलिए माघ मास में प्रभु आराधना, स्नान, ध्यान, दान, पितरों का तर्पण आदि सुकृत्य करने का विधान है।
माघ पूर्णिमा 2023
माघ पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) से फाल्गुन की शुरुआत हो जाती है, इसलिए भी माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है। ब्रह्मवैवर्त पुराण (यह वेदमार्ग का दसवां पुराण है। 18 पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है। इस पुराण में जीव की उत्पत्ति के कारण और ब्रह्माजी द्वारा समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले जीवों के जन्म एवं उनके पालन-पोषण का सविस्तार वर्णन किया गया है।) में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजी में निवास करते हैं, इसलिए इस दिन गंगाजी में स्नान, ध्यान और गंगा जल के स्पर्शमात्र से आत्मिक आनंद और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण की एक सखी विरजा थी। विरजा और भगवान श्रीकृष्ण की जहां पर भेंट हुई, वहां से विरजा नदीरूप होकर प्रवाहित होने लगी और विरजा की सखियां भी छोटी-छोटी नदियां बनीं। कहा जाता है कि पृथ्वी की बहुत-सी नदियां और सातों समुद्र विरजा से ही उत्पन्न हुए हैं, इसलिए पर्व और विशेष अवसरों पर नदियों में स्नान करने का विशेष विधान है। ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- 'ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपांतर राशि'। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है अर्थात प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो, वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है। हमारी नदियां तो प्रकृति और धरती की जलवाहिकाएं हैं, इसलिए नदियों में स्नान के साथ उन्हें स्वच्छ, प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त रखना भी हमारा परम कर्तव्य है।
'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में उल्लेख है कि माघ पूर्णिमा के दिन 'ओउ्म नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप करते हुए स्नान व दान करना अत्यंत फलदायी होता है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है। प्राचीन काल से ही श्रद्धालु नदियों के तट पर, विशेषकर माघ में कल्पवास के लिए प्रयागराज जाते हैं, जिसका समापन माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ होता है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा का अपना माहात्म्य है, लेकिन माघ पूर्णिमा विशेष है, क्योंकि माघ माह में दिव्य शक्तियां पृथ्वी पर विचरण करती हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन तीर्थ, नदी, समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप, तप, दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है।
'निर्णय सिंधु' में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। 'मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात' अर्थात जो श्रद्धालु स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ क्षेत्र में स्नान करना चाहिए। माघ पूर्णिमा को स्नान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण है।
माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है और इसके साथ ही शिशिर ऋतु की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह नदियों के शीतल स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है। जल की महत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारी नदियां हैं। जल ही तो है, जिसने सब को अपनी ओर आकर्षित किया है। गंगाजी के जल में करोड़ों श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के स्नान करते हैं और जीवन के अंतरिम आनंद का अनुभव करते हैं। परंतु अब समय आ गया है कि 'जल चेतना, जन चेतना बने', 'जल क्रांति, जन क्रांति बने' ताकि जल को लेकर आगे आने वाले संकटों का समाधान हो सके। जल का संरक्षण और संवर्द्धन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जल है तो जीवन है, जल है तो कल है, जल है पूजा है और प्रार्थना है।
जल के बिना दुनिया में शांति की कामना नहीं की जा सकती। जल विशेषज्ञों के अनुसार आगे आने वाला समय ऐसा भी हो सकता है कि लोग जल के लिए युद्ध करें या विश्व में सबसे ज्यादा जल शरणार्थी भी हो सकते हैं। इसलिए हमें जल की महत्ता को समझना होगा, जल केवल मानव जाति के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि पृथ्वी पर जो कुछ भी हम देख रहे हैं, वह जल के बिना असंभव है। माघी पूर्णिमा के अवसर पर नदियों में केवल एक डुबकी और एक आचमन नहीं, बल्कि आत्ममंथन की डुबकी लगाएं और अपने जीवन को अमृत कलश से भर लें।
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