संसार का नियम
जीवन में भी क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम काम आता है। अपनी प्रतिक्रिया को हमें क्रिया के अनुसार ही तय करना चाहिए।
चीन चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक लाओ-त्जु (ताओ ते चिंग) की कहानी है। एक दिन वह पहली बार मछली पकड़ने नदी पर गए। दरअसल, वह मछली पकड़ना सीखना चाहते थे। वे अपनी बंसी के हुक में चारा बांधकर नदी में डालकर किनारे छड़ी पकड़कर बैठ गए। कुछ समय बाद एक बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ-त्जु उत्साह में थे। उन्होंने पूरी ताकत लगाकर छड़ी को खींचा। मछली ने भी पूरी ताकत लगाई और छड़ी टूट गई। मछली हाथ नहीं आई।
लाओ-त्जु ने बंसी में दूसरी छड़ी लगाई। दोबारा वही क्रम दोहराया। कुछ समय बाद एक दूसरी बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ-त्जु ने इस बार धीरे-धीरे छड़ी को खींचा कि वह मछली लाओ-त्जु के हाथ से छड़ी छुड़ाकर भाग गई।
लाओ-त्जु ने तीसरी बार छड़ी बनाई। तीसरी मछली ने चारे में मुंह मारा। इस बार लाओ-त्जु ने उतनी ही ताकत से छड़ी को ऊपर खींचा, जितनी ताकत से मछली छड़ी को नीचे खींच रही थी। इस बार न तो छड़ी टूटी, न ही मछली हाथ से गई। मछली जब छड़ी को खींचते-खींचते थक गई, तब लाओ-त्जु ने आसानी से उसे पानी के बाहर खींच लिया।
उस दिन शाम को लाओ-त्जु ने अपने प्रवचन में शिष्यों से कहा, 'आज मैंने संसार के साथ व्यवहार करने के सिद्धांत का पता लगा लिया है। जब यह संसार तुम्हें किसी ओर खींच रहा हो, तब तुम समान बलप्रयोग करते हुए दूसरी ओर जाओ। यदि तुम प्रचंड बल का प्रयोग करोगे तो तुम नष्ट हो जाओगे और यदि तुम क्षीण बल का प्रयोग करोगे तो यह संसार तुमको नष्ट कर देगा।Ó
कथा मर्म : जीवन में भी क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम काम आता है। अपनी प्रतिक्रिया को हमें क्रिया के अनुसार ही तय करना चाहिए।