क्रिया योग: भारत व विकासशील वैश्विक आध्यात्मिक सभ्यता का संबंध
आदर्श धर्म यह होना चाहिए कि ‘सभी प्राणी सुखी हों सभी प्राणियों को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो।’ यह नहीं कि ‘सभी भारतीय सुखी हों’ या ‘सभी हिंदू सुखी हों किंतु अन्य नहीं’ इत्यादि क्योंकि हम सब के अंदर एक ही ईश्वर का स्फुलिंग विद्यमान है। यह उस विकास प्रक्रिया का एक अंग है जिसे देखने के लिए हम आए हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 24 Sep 2023 12:12 PM (IST)
स्वामी चिदानंद गिरि । विकासशील वैश्विक सभ्यता में भारत की आध्यात्मिकता क्या भूमिका निभा सकती है? यह विषय मेरे हृदय को अत्यंत प्रिय है। हमारे गुरुदेव परमहंस योगानंद जी को भी यह विषय अत्यंत प्रिय था। यह उन मुख्य उद्देश्यों में से एक था, जिनकी पूर्ति के लिए उन्हें भेजा गया था। भारत की आध्यात्मिकता के विषय में बात करने के लिए आइए, हम सभ्यता के स्वर्णिम युग में पुनः लौटते हैं, जिससे गीता, योगसूत्र और उपनिषदों की उत्पत्ति हुई थी।
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यहां आपको वह यथार्थ सर्वजनीन शिक्षा प्राप्त होती है, जो इस धर्म या उस धर्म के अमुक सदस्य अथवा केवल एक जाति के किसी सदस्य को संबोधित नहीं करती है, अपितु वह संपूर्ण विश्व की मानवीय परिस्थिति को संबोधित करती है। इसलिए उपनिषदों में आपको ये सुंदर अभिव्यक्तियां मिलती हैं कि ‘संपूर्ण विश्व एक परिवार है’ (वसुधैव कुटुंबकम) तथा ‘सत्य एक है, यद्यपि ऋषि उन्हें अनेक नामों से पुकारते हैं’ (एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति)।
आदर्श धर्म यह होना चाहिए कि ‘सभी प्राणी सुखी हों, सभी प्राणियों को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो।’ यह नहीं कि, ‘सभी भारतीय सुखी हों’ या ‘सभी हिंदू सुखी हों, किंतु अन्य नहीं’ इत्यादि, क्योंकि हम सब के अंदर एक ही ईश्वर का स्फुलिंग विद्यमान है। यह उस विकास प्रक्रिया का एक अंग है, जिसे देखने के लिए हम आए हैं कि हम एक-दूसरे को अपने भाइयों और बहनों के रूप में पहचानें।भारत जो महानतम वस्तु विश्व को प्रदान कर सकता है, वह है भारत की अपनी दिव्य एवं शाश्वत विरासत का आदर्श एवं उदाहरण, क्योंकि संपूर्ण विश्व भारत को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखता है। यदि आप कभी पश्चिम में नहीं गए हैं तो संभवतः आप नहीं जानते होंगे, परंतु किसी ऐसे व्यक्ति की दृष्टि में, जिसका प्रारंभिक जीवन उस पीढ़ी के साथ बीता है, जिसमें संभवतः अनेक लोगों ने या तो योगी कथामृत पुस्तक पढ़ी होगी या उन्होंने भारत से अमेरिका गए किसी आध्यात्मिक शिक्षक के किसी कार्यक्रम में भाग लिया होगा।
विश्व भारत को इस दृष्टि से देखता है। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के साथ भी ऐसा ही है। मानवता और आध्यात्मिकता के संदर्भ में लाखों लोग भारत का एक अग्रज के रूप में आदर करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वैश्विक आध्यात्मिक सभ्यता का विकास भौतिक रूप यानी प्रौद्योगिकी, संचार और यात्रा के माध्यम से हो रहा है। जब आप कुछ पीढ़ियों पूर्व के समय की ओर मुड़कर देखते हैं तो अमेरिका से भारत तक की यात्रा करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी और अनेक लोगों के लिए यह असंभव था। परंतु आज लोग केवल वायुयान में बैठकर बेंगलुरु या शिकागो जा सकते हैं।
विश्व बहुत छोटा हो गया है। अब यह विश्व अलग-अलग देशों और सभ्यताओं का विविधतापूर्ण समूह नहीं है। इंटरनेट ने मानव समाज के ढांचे को रूपांतरित कर दिया है। यह एक तंत्रिका तंत्र की भांति बन गया है, जो मानव परिवार के शरीर को संगठित करता है। जब आप लोगों को एक-दूसरे के अधिक निकट लाते हैं, तो आप एक-दूसरे के साथ अधिक अच्छी तरह से मिल-जुल कर रहते हैं।
दुर्भाग्यवश, आपने परिवार के ऐसे सदस्यों को देखा है, जिनके मध्य एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक कटुता होती है। परंतु यदि मानव जाति ऐसा करती है तो वह कुछ पीढ़ियों से अधिक नहीं टिक पाएगी। हमारे पास सामूहिक विनाश की क्षमता है, जो आज से सौ वर्ष पूर्व नहीं थी। तकनीकी शक्ति में वृद्धि और विश्व के संकुचन के साथ-साथ हम वस्तुतः एक ही परिवार में रह रहे हैं, जो अभिलिखित इतिहास में पहले कभी इतना अधिक नहीं था।
ऐसी स्थिति में हमारे लिए उसी परिमाण में ‘आध्यात्मिक पालन-पोषण’ और ‘आध्यात्मिक परिपक्वता’ का होना आवश्यक है, जहां हमारे पास आत्म-नियंत्रण हो, जहां हम उन लोगों से दूर रहने का प्रयास नहीं करते, जिन्हें हम पसंद नहीं करते। हमारे अंदर आध्यात्मिक परिपक्वता का होना आवश्यक है, ताकि हम यह अनुभव कर सकें कि हमारी भांति ही अन्य मनुष्यों में भी सुख और सुरक्षा, शांति और सफलता प्राप्त करने की सहज प्रवृत्ति विद्यमान है।
अंततः लोग यह अनुभव करने लगते हैं कि, ‘मैं वास्तव में तब तक सुखी नहीं हो सकता हूं, जब तक मेरे आसपास के लोग सुखी नहीं होंगे।’ आप उन्हें यह कहकर दूर नहीं धकेल सकते हैं कि उस देश में ऐसा है और उस देश में वैसा है, क्योंकि वह व्यापक रूप से संपूर्ण विश्व को प्रभावित करता है। देखिए, रूस और यूक्रेन के साथ क्या हुआ है। आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन तक सभी ने यह कहा है कि 21वीं शताब्दी में ऐसा करना उचित नहीं है। भौतिक प्रौद्योगिकी के साथ-साथ आध्यात्मिकता का विकास होना भी आवश्यक है।