Holi 2023 Special: नीलांबरा धरो राधा, पीताबंरा धरो हरि
Holi 2023 जहां पीतांबरधारी श्रीकृष्ण और नीलांबरधारिणी श्रीराधा श्रीयुगल सरकार मिले वहां-वहां ‘हरि हरो है जाए’ अर्थात जब नीले और पीत वर्ण का मिलन हो जाता है तो हरे रंग की निष्पत्ति होती है। इसी प्रकार पूरी हरी प्रकृति राधा-कृष्ण के मिलन स्वरूप में ही प्रतीत होती है।
नई दिल्ली, वैष्णावाचार्य अभिषेक गोस्वामी (आध्यात्मिक गुरु, श्रीराधा रमण मंदिर, वृंदावन) | Holi 2023 Special: होली रंगों का पर्व है। इस पर्व पर हमारे उल्लास को रंग ही प्रकट करते हैं। रंगों की अपनी भाषा है। हम अपनी बातों को, अपनी भावना को, अपने विचारों को, अपने प्रस्तुतीकरण को, अपने कर्म को, अपने आनंद को और अपनी चेतना को सजा पाएं भव्यता से, दिव्यता से, प्रेम से, करुणा से, भक्ति से, ज्ञान से और वैराग्य से। यह सब बिना रंगों के असंभव है।
नीलांबरा धरो राधा पीताबंरा धरो हरि:।
जीवन निधने नित्यम् राधाकृष्ण गतिर्मम।।
जहां पीतांबरधारी श्रीकृष्ण और नीलांबरधारिणी श्रीराधा श्रीयुगल सरकार मिले, वहां-वहां ‘हरि हरो है जाए’ मतलब जब एक कलाकार की तूलिका चलती है और वह नील और पीत को मिलाता है, तो रंग हरा हो जाता है। इसी प्रकार पूरी हरी प्रकृति वैष्णवों को राधा-कृष्ण के मिलन स्वरूप में ही प्रतीत होती है। ऐसे ही हमारी चेतना का भी बहुत गहरा संबंध है रंगों के साथ। हर व्यक्ति का अपना आभा मंडल होता है, पर वह उस आभा मंडल से अनभिज्ञ है। वह आभा मंडल जैसे आप देवी-देवताओं के चित्रों में उनके पीछे देख पाते हैं। ऐसे ही वह समस्त मानवीय सृष्टि से साथ भी रहता है। उस आभा मंडल के भी अलग-अलग रंग होते हैं और उन रंगों से सीधा संबंध आपके विचार, आचरण, चरित्र, रहन-सहन और अध्यात्म से होता है। यह वास्तविक संबंध है आपका, आपके रंग के साथ। आपको कभी-कभी पता भी नहीं होता कि आप किस रंग को प्रतिबिंबित करते हैं, आप जिस रंग को प्रतिबिंबित करते हैं, वैसे ही आप हैं।
हर रंग की कुछ विशेषताएं हैं, उसका स्वभाव, उसका चरित्र है। आप एक निर्जन वन में जाएं और कहीं गहरे में एक पेड़ पर एक पुष्प चटक लाल रंग का देखें, बस आपकी सारी चेतना का आकर्षण उस पर हो जाएगा। क्योंकि लाल रंग जीवंतता का प्रतीक है। वह पुष्प वन में बिना बोले, बिना शोर गुल के अवगत करवा रहा है अपनी मौजूदगी। जब आपसे आपके आभा मंडल द्वारा लाल रंग निर्गत होता है, तो आप जीवंत हैं। लाल रंग में प्राचुर्यता का भाव, कृपा, करुणा, मातृत्व के भाव की अधिकता पाई जाती है। लाल रंग शक्ति उपासना का भी प्रतीक है।
भगवान कृष्ण नील वर्ण हैं, शिव नील कंठ हैं। नील रंग से व्यापकता, समावेशिता जैसे गगन को देखकर, जैसे सागर को देखकर जो भाव आता है। आकाश से अधिक कुछ भी व्यापक नहीं और सागर से अधिक गहरा भी कुछ नहीं। बस, वैसे ही मेरे कृष्ण, मेरे शिव और मेरे राम की कृपा है। क्योंकि उनके आभा मंडल से नील रंग वैष्णवों को शरणागत कराता है। अध्यात्म मार्ग के पथिक की यात्रा के बहुत सारे पड़ाव भी होते हैं। वे जब धर्म के पथ पर अग्रसर होते हैं, तो उनके आभा मंडल से प्रतिबिंबित रंग अलग-अलग स्तर पर आभा के अलग-अलग रंगों से होते हुए गुजरते हैं। जैसे आज्ञा चक्र पर ध्यानस्थ की आभा का रंग नारंगी हो जाता है। हमारे देश में इस आभा मंडल के प्रति बहुत समर्पण भाव है। अग्नि का रंग भी नारंगी होता है। यह आभा मंडल आध्यात्मिक ज्ञान का पूरक है। इसी स्थान पर तीसरा नेत्र भी विद्यमान है। मनुष्य के शरीर में 114 चक्र हैं। 112 चक्रों के तो रंग हैं, पर दो चक्र बिना रंग के हैं। क्योंकि उनका संबंध भौतिक शरीर से नहीं।
नारंगी रंग तो प्रतीक है सूर्योदय का। इससे नित्य नया प्रकाश प्रवेश करता है। जब कोई धर्म पथिक परम शांत, सुशील, पवित्र, भाव से पूरित हो जाता है, तो उसके आभा मंडल का रंग सफेद हो जाता है। और अब वैराग्य। राग्य का मतलब रंग और वै का मतलब के पार। वैराग्य का मतलब रंगों के पार। मतलब अब आप पारदर्शी हो गए। अगर आपके पीछे लाल है, तो आपमें से लाल निकलेगा, अगर नीला है तो नीला ही प्रस्फुटित होगा। जब आप निष्पक्ष हो गए। आप जहां भी होंगे, पूरे होंगे, पर किसी के पक्ष में नहीं और ना ही विपक्ष में। अपनी निजता में रहेंगे। यही वास्तविक वृंदावन की आध्यात्मिक होली है।