आइए जानें, श्राद्ध की महिमा के बारे में अद्भूत जानकारी
अश्रि्वन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से अमावस्या र्पयत पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पंचमयज्ञ आदि का विधान है। हिन्दू धर्मग्रंथों में श्राद्ध आदि का विवेचना अत्यंत विस्तार के साथ किया गया है। श्राद्ध की मूलभूत विवेचना यह है कि प्रेत और पितर के निमित उनकी आत्मतृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। शतपथ ब्राहमण में कहा गया है कि वर्ष की बसंत, ग्रीष्म
आश्रि्वन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पंचमयज्ञ आदि का विधान है। हिन्दू धर्मग्रंथों में श्राद्ध आदि का विवेचना अत्यंत विस्तार के साथ किया गया है। श्राद्ध की मूलभूत विवेचना यह है कि प्रेत और पितर के निमित उनकी आत्मतृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
शतपथ ब्राहमण में कहा गया है कि वर्ष की बसंत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतुएं देवताओं की ऋतुएं होती है। जबकि शरद, हेमन्त और शिशिर पितरों की ऋतुएं होती। हमारा एक माह पितरों के लिए एक दिन माना जाता है। पितृलोक की दृष्टि से हमारे 15 दिन उनका एक दिन होता है और बाकी 15 दिन उनकी एक रात्रि होती है। शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर कृष्णपक्ष की अष्टमी तक पितरों का एक दिन होता है उसी अवधि के बीच में अमावस्या पड़ती है जो पितरों के लिए दिन का मध्य भाग है अतएव प्रति अमावस्या को मध्याहन में श्राद्धकर्म करने का विधान है। इसे 'दर्श श्राद्ध' कहते हैं।
अपने पितृ दिवस पर श्राद्ध एवं तर्पण कराएं। पितरों की आराधना दो प्रकार से हो सकती है। एक तिल अर्पण अर्थात जल के साथ तिल मिलाकर पितरों के नाम से जल में छोड़ना इसी को तिलांजलि कहते हैं। दूसरे प्रकार का श्राद्ध हवन कर्म के साथ होता है। पितरों के लिए हवन कुंड में अन्न, घी आदि वस्तुएं मंत्रोच्चारण के साथ कहा गया है। ये समय हैं- प्रतिमास की अमावस्या, एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य संक्रांति का दिन, सूर्य ग्रहण अथवा चंद्रग्रहण का समय और माघ मास कृष्णपक्ष की अष्टमी का दिन। इस तरह के 13 अवसर बताए गए हैं। इनमें पितृपक्ष का महत्व अधिक है।
हमारी संस्कृति में माता-पिता एवं गुरु को भी विशेष श्रद्धा एवं आदर दिया जाता है, उन्हें देव तुल्य माना जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं। महालया श्राद्ध 17 दिनों तक होता है। अनंत चतुदर्शी से इसका प्रारंभ होता है। प्रथम पूनम को विष्णु का श्राद्ध होता है, आश्रि्वन मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक जो तिथियां आती हैं उनमें पितरों के श्राद्ध कर्म संपन्न होते हैं।