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आज है सिखों के चतुर्थ गुरु रामदास जी के प्रकाश पर्व

हर इंसान में गुण और अवगुण दोनों होते हैं, लेकिन विवेकशील इंसान अपने भीतर के अवगुणों को दूर कर गुणों को ग्रहण करता है। गुरु रामदास जी ने लोगों को अच्छाइयों पर चलने के लिए प्रेरित किया.. सिखों की गुरु परंपरा के चतुर्थ गुरु श्री रामदास जी ने जीवन में सद्गुण अपनाने पर विशेष्

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 09 Oct 2014 01:34 PM (IST)Updated: Thu, 09 Oct 2014 01:36 PM (IST)

हर इंसान में गुण और अवगुण दोनों होते हैं, लेकिन विवेकशील इंसान अपने भीतर के अवगुणों को दूर कर गुणों को ग्रहण करता है। गुरु रामदास जी ने लोगों को अच्छाइयों पर चलने के लिए प्रेरित किया..

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सिखों की गुरु परंपरा के चतुर्थ गुरु श्री रामदास जी ने जीवन में सद्गुण अपनाने पर विशेष बल दिया था। उनका कहना था कि जिन लोगों का हृदय शुद्ध होता है, उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सताता। यही कारण है कि ईष्र्या-द्वेष जैसे दुर्गुण रखने वाले व्यक्तियों के बारे में उन्होंने कहा है- जिनके अंदर इस तरह के भाव होते हैं, उसका कभी भला नहीं होता। उन्होंने कहा कि जैसे हंस दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है, उसी तरह अच्छे लोग अपने अंदर के अहंकार और ईष्र्या को चुनकर अलग कर देते हैं। इस प्रकार उन्होंने लोगों को हंस की तरह विवेकवान बनने की प्रेरणा दी।

गुरु जी मानवीय समता के बड़े समर्थक थे। यही कारण है कि उन्होंने बताया कि सभी लोग एक ही हवा और एक ही माटी के बने हैं तथा सभी में एक ही ज्योति समाई हुई है। इसलिए मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव क्यों किया जाए। कार्तिक, कृष्ण पक्ष द्वितीया, संवत 1591 विक्रमी अर्थात 9 अक्टूबर, 1534 को लाहौर शहर में जन्म लेने वाले गुरुजी को घर में सब से बड़ा होने के कारण जेठा कहा जाता था। उन्होंने जीवन में बड़ा संघर्ष किया। सिर्फ सात वर्ष की आयु में माता-पिता का साया सिर से उठ गया। उनके नाना उन्हें अपने साथ उनकी ननिहाल बासरके ले गए। वे घर की आर्थिक जिम्मेदारियों में हाथ बांटने के लिए घुणघुणिआं (उबला हुआ अनाज) बेचा करते थे।

बासरकेतीसरे गुरु श्री अमरदास जी का जन्म स्थान है। 12 वर्षीय बालक जेठा ने जब तीसरे गुरु के दर्शन किए तो इतना प्रभावित हुआ कि गुरु-चरणों में ही रहने का निश्चय कर लिया। वह गुरु सेवा करता और जीविका के लिए घुणघुणिआं भी बेचता। जेठा का आनंद कारज (विवाह) तीसरे गुरु की सुपुत्री बीबी भानी से हुआ। उसी समय उन्होंने 'चार लावां' की रचना की, जिसमें आत्मा-परमात्मा के मिलन का वर्णन किया गया है। आजकल सिखों के विवाह में चार फेरों के साथ इन चार लावों का गायन किया जाता है।

तीसरे गुरु के आदेश पर रामदास

जी ने गोइंदवाल साहिब में बावली और अमृत सरोवर का निर्माण कराया। उन्होंने अमृतसर नगर की स्थापना भी की। 1574 में तीसरे गुरु ने भाई जेठा को गुरुगद्दी सौंप दी और ज्योति जोत समा गए। भाई जेठा गुरु रामदास जी बन गए। गुरु रामदास जी ने मनुष्य को अच्छे गुणों से युक्त होने की प्रेरणा दी। उनके विचार हमें लोभ व स्वार्थ से रहित समरस जीवन जीने की राह दिखाते हैं।


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