हड़बड़ी न करें, क्योंकि धैर्य का फल हमेशा मीठा होता है!
धैर्य का अर्थ मूक रहकर मात्र प्रतीक्षा करना नहीं है। धैर्य का अर्थ है उत्तेजनारहित होकर अपने कार्य में निरंतर संलग्न रहना। किसी कार्य के प्रति अतिउत्साह अथवा असंयम उक्त कार्य के फल को परिपक्व नहीं होने देता।
नई दिल्ली, ट्विंकल तोमर सिंह। किसी गुरुकुल में गुरुदेव बालकों को बाण चलाना सिखा रहे थे। एक अतिउत्साही शिष्य ने धनुष को इतनी जोर से खींचा कि उसके दो टुकड़े हो गए। गुरुदेव ने शिष्य को ज्ञान दिया कि अधीरता से योग्यता अपव्यय हो जाती है। लक्ष्य को भेदने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है उससे अधिक या कम ऊर्जा का प्रयोग करने पर लक्ष्य को साधना असंभव है। हमारा जीवन भी एक धनुष के समान है। यदि धैर्यपूर्वक ऊर्जा को धीरे-धीरे संचित करने के बाद नियंत्रण के साथ इसे व्यय करने की कला सीख ली जाए तो लक्ष्य कितनी ही दूरी पर क्यों न हो उसे प्राप्त करना असंभव नहीं है।
धैर्य का अर्थ मूक रहकर मात्र प्रतीक्षा करना नहीं है। धैर्य का अर्थ है उत्तेजनारहित होकर अपने कार्य में निरंतर संलग्न रहना। किसी कार्य के प्रति अतिउत्साह अथवा असंयम उक्त कार्य के फल को परिपक्व नहीं होने देता। चाक पर चढ़े कच्चे घड़े को यदि आतुरता में समय से पहले उतार लिया जाए तो उसका आकार विकृत हो जाता है। हमें ऐसा भ्रम हो सकता है कि जीवन में प्रगति इतनी धीमी गति से हो रही है कि कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता। हम परिवर्तन की चाह में धैर्य खो बैठते हैं और शीघ्र सफलता की आकांक्षा में हड़बड़ी में ऐसे निर्णय ले बैठते हैं, जिनसे हमारा भविष्य बिगड़ सकता है।
युवाओं में ऊर्जा का अधिक भंडार होता है। यह ऊर्जा उन्हें कार्य को जल्द से जल्द संपादित करके फल प्राप्ति के लिए लालायित करती है। उन्हें इस ऊर्जा का सदुपयोग करना नहीं आता। हमें ईश्वर की योजना में भरोसा रखना होगा कि भले ही कोई प्रगति दिख नहीं रही है, मगर समय आने पर ही कार्य सफल होगा। कभी-कभी प्रगति प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष भी होती है। प्रसिद्ध मनोविज्ञानी ब्रायन वाइस का कहना है, ‘आध्यात्मिक विकास का अर्थ है धैर्य की महारत। धैर्य नियति को उसकी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ने की अनुमति देता है।’ वस्तुत: धैर्य एक अर्जित गुण और अंतरात्मा की उपलब्धि है।