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    चिंतन धरोहर: संघर्ष से आती है जीवंतता, पढ़िए ओशो के विचार

    By Jagran NewsEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Sun, 26 Mar 2023 03:09 PM (IST)

    चिंतन धरोहर जीवन में संघर्ष का अनुभव करना मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह बहुत सुरक्षा मिले और कोई संघर्ष न हो तो रीढ़ टूट जाती है ठीक उसी तरह जीवन में संघर्ष न होने से नीव कमजोर हो जाती है।

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    जानिए जीवन में संघर्ष का क्या मूल्य है और इसकी आवश्यकता क्यों है?

    नई दिल्ली, ओशो | चिंतन धरोहर: साधना संसार में है, जंगल में तो साधना का सवाल ही नहीं है। साधना यहां है, जहां प्रतिपल कांटे हैं। कांटों के बीच जिस दिन तुम चलना सीख लो और कांटों के बीच तो चलो और कांटे चुभें न, बस उसी दिन समझ लेना कि अब तुम योग्य हो गए। जंगल जाने की जरूरत भी क्या है। यहीं भीड़ में जंगल हो गया है, अगर तुम्हारे भीतर प्रौढ़ता आ जाए, तो प्रज्ञा का जन्म हो। प्रज्ञा का जन्म संघर्षण से होता है। प्रतिपल जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने से होता है। हारने, गिरने, उठने से होता है। हजार बार गाली दी जाएगी, तुम क्रोधित हो जाओगे। हजार बार के अनुभव से तुम्हें समझ में आ जाएगा कि अपने को जलाना व्यर्थ है।

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    गाली कोई दूसरा दे रहा है, दंड अपने को देना व्यर्थ है। एक दिन तो ऐसा आएगा कि कोई दूसरा गाली देगा और तुम्हारे भीतर क्रोध न आएगा। उसी दिन तुम्हारे भीतर एक कांटा फूल बन गया। उस दिन तुम्हें जो शांति मिलेगी, कोई जंगल नहीं दे सकता। जंगल की शांति मुर्दा है। अगर यहां गालियों के बीच तुम शांत हो गए, तो तुम्हारी शांति में एक जीवंतता होगी। जंगल की शांति में सन्नाटा है, क्योंकि वहां कोई है ही नहीं। वह नकारात्मक है। संसार में अगर तुम शांत हो जाओ तो सकारात्मक है। जंगल की शांति मरने जैसी है, संसार की शांति बड़ी जीवंत है।

    परमात्मा को पाना है, तो भागना मत। भगोड़ों से परमात्मा का कभी कोई संबंध नहीं जुड़ता। कायरों से संबंध जुड़ भी कैसे सकता है? चुनौती स्वीकार करने वाला साहस चाहिए। माना कि साहस में गिरना भी होता है, चोट भी खानी होती है, लेकिन वही एकमात्र मार्ग है। तुमने कभी देखा, बहुत सुविधा-संपन्न घरों के अधिकतर बच्चे बुद्धिमान नहीं होते, क्योंकि वहां चुनौती नहीं है। सारे बुद्धिमान बच्चे उन घरों से आते हैं, जहां बड़ा संघर्ष करना पड़ता है। जहां छोटी-छोटी बात को पाना मुश्किल है। अरबपति हेनरी फोर्ड अपने बच्चों को सड़क पर जूता पालिश करने भिजवाता था। वह कहता था कि अपना जेब खर्च तुम खुद ही पैदा करो। पड़ोसियों ने भी उससे कहा कि यह ज्यादती है, यह तुम क्या करवा रहे हो? उसने कहा कि मैंने खुद जूते पालिश कर-कर के पैसा कमाया है। जो मेरे जमाने में धनपति थे, भीख मांग रहे हैं। मैं भिखमंगा था, मैं आज दुनिया का सबसे बड़ा करोड़पति हूं। मैं अपने बच्चों को भिखमंगा नहीं बनाना चाहता, इसलिए उन्हें सड़क पर जूते पालिश करने भेजता हूं।

    अगर बहुत सुरक्षा मिले और कोई संघर्ष न हो, तो रीढ़ टूट जाती है। रीढ़ बनती ही संघर्ष में है। तुम जितना संघर्ष लेते हो, उतनी ही तुम्हारी रीढ़ मजबूत होती है। मैं संसार से भागने को नहीं, संसार से जागने को कहता हूं। संन्यास भगोड़ापन नहीं है, संन्यास महान संघर्ष है जागरण का। जहां चुनौती है, वहां से हट मत जाना। जब तक चुनौती का काम पूरा न हो जाए, टिके रहना। भागने की वृत्ति न हो, तो जल्दी जागना हो सकता है, क्योंकि जो शक्ति भागने में लगती है, वही जागने में लग जाती है।