क्या मनुष्य की आवश्यकताओं से जुड़े होते हैं संकल्प?
किसी तपस्वी व्यक्ति की बात छोड़ दें तो एक सामान्य व्यक्ति की आवश्यकताओं का कोई ओर-छोर नहीं होता। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अनेक साधन हो सकते हैं। इनमें सत्य साधन भी सम्मिलित हैं और असत्य साधन भी।
नई दिल्ली, डॉ. प्रशांत अग्निहोत्री। कर्म की साधना करने वाले मानते हैं कि किसी भी अभीष्ट की पूर्ति के लिए दृढ़ता के मार्ग का चयन ही संकल्प है। वस्तुत: संकल्प दो प्रकार का होता है। एक यह कि मुझे यह काम करना है। इस संकल्प को हम भाव विषयक संकल्प कह सकते हैं। दूसरा, इसके विपरीत कि मुझे यह काम नहीं करना। इसे अभाव विषयक संकल्प कह सकते हैं।
सीधे तौर पर कहें तो संकल्प मनुष्य की आवश्यकताओं से जुड़े होते हैं। यदि किसी तपस्वी व्यक्ति की बात छोड़ दें तो एक सामान्य व्यक्ति की आवश्यकताओं का कोई ओर-छोर नहीं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अनेक साधन हो सकते हैं। इनमें सत्य साधन भी सम्मिलित हैं और असत्य साधन भी। साधन के प्रयोग से पूर्व संकल्प का होना आवश्यक है। संकल्प के अभाव में दुष्ट या सुष्ठु किसी भी साधन का उपयोग नहीं किया जा सकता।
कोई संकल्प, शुभ संकल्प होगा या अशुभ, यह मन का विषय है। एक किसान यदि अपने खेत में मिर्च बोने का संकल्प कर मिर्च का बीज बोता है, तो उसे तीखी मिर्च ही प्राप्त होगी। उसे किसी भी अवस्था में गन्ने की मिठास की अनुभूति नहीं हो सकती। इसके लिए उसे गन्ना बोने का संकल्प लेकर वही प्रकल्प करना होगा। भारतीय दार्शनिकों ने संकल्प और विकल्पों को मन का धर्म माना है। उनका यह भी मानना है कि पवित्र मन ही पवित्र संकल्प का माध्यम बनता है, जबकि अपवित्र मन एक अपवित्र संकल्प को जन्म देता है।
यजुर्वेद के अनुसार शुभ और अशुभ दोनों ही संकल्पों का सूत्रधार मन होता है। अशिव संकल्प से अकल्याण और बंधन प्राप्त होता है, जबकि शिव संकल्प से परहित तथा मुक्ति का मार्ग मिलता है। जिसका मन पवित्र है, उसका मन बलिष्ठ भी होगा और बलिष्ठ मन जो संकल्प करेगा, उसकी सिद्धि कठिन नहीं है। अत: शुभ फल की इच्छा करके, मन से उस संकल्प को धारण कर, कर्म के द्वारा उस कार्य को सिद्ध करना चाहिए।