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धरती को रखना है अक्षय

अक्षय तृतीया को ही महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और सत्य की स्थापना के साथ एक महान भारत के दर्शन हुए थे। द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। अद्भुत संयोग है कि अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर विश्व पृथ्वी दिवस भी है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sat, 15 Apr 2023 07:06 PM (IST)Updated: Sat, 15 Apr 2023 07:06 PM (IST)
धरती को रखना है अक्षय
Akshaya Tritiya 2023: धरती को रखना है अक्षय

स्वामी चिदानंद सरस्वती, ऋषिकेश | भारत अर्थात प्रकाश, ऊर्जा, उत्साह, संस्कृति और संस्कारों से युक्त राष्ट्र। यहां पर प्रतिदिन एक नूतन सूर्योदय के साथ एक नए पर्व का आरंभ होता है। वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हम ‘अक्षय तृतीया’ पर्व मनाते हैं। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन किए गए शुभ कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है। इसलिए इस तिथि को स्वयंसिद्ध मुहूर्त भी कहा गया है :

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‘सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।

दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्।’

भविष्य पुराण के अनुसार, इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु का नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के रूप मे अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। इस दिन भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है। अक्षय तृतीया को ही महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और सत्य की स्थापना के साथ एक महान भारत के दर्शन हुए थे। द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। अद्भुत संयोग है कि अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर विश्व पृथ्वी दिवस भी है।

यह समय अपनी धरती माता से जुड़ने का है, ताकि हम पर्यावरण की चुनौतियों यथा जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण को कम करने के साथ ही जैवविविधता को जानें, समझें और जियें। धरती है तो हम हैं। धरती ही हमारा खरा सोना है, इसलिए हमें अपनी धरती माता के महत्व को समझना होगा। हमें अपनी प्रकृति और पृथ्वी के साथ सद्भावयुक्त एवं मानवतापूर्ण व्यवहार करना होगा। इसके लिए अपनी जीवनशैली और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।

पृथ्वी हम सभी का एक समृद्ध और सुरक्षित घर है। पृथ्वी की सुरक्षा का अर्थ है हम सब की सुरक्षा। इसलिए हम पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहकर ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। पृथ्वी की नैसर्गिकता को बनाए रखने के लिए पर्यावरण अनुकूल जीवन पद्धति को बढ़ावा देना होगा।

पृथ्वी के गर्भ से प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित रूप से दोहन किया जा रहा है, इससे जीवन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। अब कुछ ऐसा किया जाए, जिससे पृथ्वी का जीवन और पर्वों की महत्ता, दोनों बने रहें। हमें प्रकृति के दोहन के विषय में नहीं, बल्कि संरक्षण के विषय में सोचना होगा। अक्षय तृतीया पर संकल्प लें कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का सीमित और संयमित उपयोग करेंगे, ताकि वे अक्षय रहें, उनका कभी क्षय न हो, विघटन न हो, कभी अंत न हो अर्थात वो अनंत रहें। अक्षय तृतीया को किए गए कर्मों का कभी विनाश नहीं होता।

इस दिन सोना खरीदने का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन देखा जाए तो धरती ही हमारा सोना है और धरती के गर्भ में ही सोना है। इसलिए धरती माता को बचाने के लिए मिलकर प्रयास करें, पौधों का रोपण करें, प्लास्टिक का उपयोग न करें और पारंपरिक प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली अपनाएं, ताकि हमारा प्रत्येक कर्म और उसका परिणाम अक्षय हो।

परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश


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