कान्हा के धाम में नहीं होगा राम का 'गुणगान'
कलाधारी की लीला भूमि। भागवताचार्यो और रास मंडलियों की जननी। यहां के भागवताचार्य और रास मंडलियां पूरी दुनिया में कथा और लीलाएं करती हैं। मठ-मंदिर हजारों और दानदाता भी एक से बढ़कर एक। मगर राम काज को कोई तैयार नहीं, इसलिए इस साल वृंदावन में राम लीला नहीं होगी। अगुवाई करने को कोई तैयार नहीं बताया गया है।
वृंदावन। कलाधारी की लीला भूमि। भागवताचार्यो और रास मंडलियों की जननी। यहां के भागवताचार्य और रास मंडलियां पूरी दुनिया में कथा और लीलाएं करती हैं। मठ-मंदिर हजारों और दानदाता भी एक से बढ़कर एक। मगर राम काज को कोई तैयार नहीं, इसलिए इस साल वृंदावन में राम लीला नहीं होगी। अगुवाई करने को कोई तैयार नहीं बताया गया है।
वृंदावन की रामलीला करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है। इसकी ख्याति इतनी रही है कि आगरा, हाथरस, दिल्ली और पलवल जैसे दूरदराज के लोग भी वृंदावन की रामलीला देखने आते थे। खासकर हनुमान जी की संजीवनी बूटी लीला का मंचन अनोखा होता था। रंग जी मंदिर के ऊपर से लेकर मंदिर के एक गेट तक मोटा तार बांधा जाता था। इसके सहारे हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर ऐसे आते थे, मानो वह हकीकत में उड़कर आ रहे हों। दो दशक पहले तक वृंदावन में भी रामलीला की शुरुआत समय से होती थी और रावण के पुतले का दहन दशहरा के दिन होता था, मगर इसके बाद भगवान श्रीराम की लीला पर मनमानी हावी हो गई। दशहरा के बाद इसकी शुरुआत होती थी और रावण दहन की लीला दीपावली के आसपास होती थी। इस साल इसकी अगुवाई करने को कोई तैयार नहीं है।
नगर पंचायती रामलीला कमेटी के पिछली साल अध्यक्ष रहे ब्रजेश गलीवाल ने बताया कि पिछली साल रामलीला की समाप्ति के साथ ही उनका दायित्व समाप्त हो गया। इस साल रामलीला कराने में वह असमर्थ हैं। पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र शर्मा ने कहा कि लीला के पूरे मंचन पर करीब नौ लाख रुपये का खर्च आता है। चंदा भी नहीं हो पाता। जो अध्यक्ष बनता है, उसी पर रामलीला कराने की जिम्मेदारी डाल दी जाती है। लिहाजा, कोई भी अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। इस साल तो अब तक नगर पंचायती रामलीला कमेटी भी गठित नहीं हुई है। इन दोनों पूर्व पदाधिकारियों और पूर्व संयोजक बिहारी लाल वशिष्ठ ने रविवार को बताया कि इस साल रामलीला होने की उम्मीद नहीं है।