न चाहते हुए भी क्यों चिरंजीवी हैं हनुमान? जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा
Facts of Ramayan सनातन वेद एवं पुराणों में बताया गया है कि हनुमान अष्ट चिरंजीवी देवताओं में से एक हैं। लेकिन एक समय ऐसा आया था जब उन्हें यह वरदान स्वीकार नहीं था और वह इस वरदान को वापिस लेने की हठ करने लगे थे। जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा।
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क; रामायण कथा में मुख्य भूमिका निभाने वाले हनुमान जी से तो सभी परिचित हैं। सभी हिन्दू घरों में इनकी पूजा निश्चित रूप से की जाती है। वेद एवं पुराणों के अनुसार, हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। कई धर्मग्रंथों में भी उनके विषय में लिखा गया है। बता दें भगवान शिव के 11 रूद्र अवतारों में हनुमान जी भी एक हैं, जिन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है। उन्हें भगवान श्री राम का अनन्य भक्त भी कहा जाता है।
किंवदंतियों की मानें तो कलयुग में आठ ऐसे देवता हैं, जिन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें से एक भगवान हनुमान जी भी हैं। लेकिन एक समय ऐसा था जब हनुमान जी को यह वरदान स्वीकार नहीं था। आइए जानते हैं, कैसे प्राप्त हुआ बजरंगबली को अमरता का वरदान?
भगवान हनुमान के अवतरण से जुड़ी कथा
शिव पुराण में बताया गया है कि भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था और तब भगवान शिव ने माता पार्वती से यह इच्छा जाहिर की थी कि वह अपने प्रभु के पास पृथ्वी लोक पर जाना चाहते हैं। माता पार्वती ने व्याकुल होकर उनसे कहा कि यदि वह पृथ्वी पर चले गए तो उनके बिना वह कैसे रह पाएंगी। तब भगवान शिव ने 11 रुद्र अवतारों में से एक हनुमान जी का अवतार धारण किया था।
कुछ कथाओं से यह भी प्राप्त हुआ है कि भगवान शिव त्रिकालदर्शी हैं और इसलिए उन्हें यह पता था कि भगवान श्री राम के जीवन में कई प्रकार की परेशानियां आएंगी. साथ ही पृथ्वी पर उनके सहयोग के लिए व मानव जीवन के कल्याण के लिए उनकी आवश्यकता अवश्य पड़ेगी। इसलिए वह हनुमान जी का रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। इसलिए आज भी हनुमान जी को कलयुग के देवता के रूप में को पूजा जाता है और भगवान शिव के सभी अवतारों में इन्हें सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
क्या है हनुमान जी के अमर होने का उद्देश्य
वाल्मीकि रामायण के अनुसार अशोक वाटिका में मां सीता को ढूंढने के बाद, जानकी जी ने हनुमान जी को अमरत्व का वरदान दिया था। इसके बाद रावण के विरुद्ध युद्ध में वह श्री राम के मुख्य सहयोगी के रूप में लड़े थे और अयोध्या लौटने के बाद उन्होंने श्री राम के प्रति अपनी भक्ति का परिचय दिया था। वह अनन्य भक्त के रूप में हर दिन उनकी सेवा करते थे। लेकिन जब भगवान श्री राम ने गोलोक प्रस्थान करने का विचार किया, तब यह सुनकर हनुमान जी बहुत ही दुखी हो गए और वह जानकी जी के पास अपनी व्यथा लेकर पहुंचे।
हनुमान जी से माता सीता से कहा कि 'माता आपने अमर होने का वरदान तो दिया, किंतु यह नहीं बताया कि जब मेरे प्रभु राम धरती से चले जाएंगे, तब मैं क्या करूंगा?' यह कहते ही मारुतिनंदन वरदान वापस लेने की हठ करने लगे। तब सीता माता ने श्री राम का ध्यान किया और प्रभु प्रकट हुए। भगवान श्री राम ने हनुमान जी को गले लगाते हुए कहा की 'धरती पर आने वाला कोई भी जीव अमर नहीं है। लेकिन तुम्हें यह वरदान मिला है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब तक इस धरती पर राम का नाम लिया जाएगा, तब तक राम भक्तों का उद्धार तुम ही करोगे।' तब हनुमान जी ने अपने हठ को त्याग दिया और इस वरदान को श्री राम की आज्ञा मानकर स्वीकार कर लिया। यही कारण है कि हनुमान जी आज भी धरती पर वास करते हैं और श्री राम के भक्तों का बेड़ा पार लगाते हैं।
डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।