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Kachhap Avatar: मंदराचल पर्वत के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने लिया था कच्छप अवतार, पढ़ें इससे जुड़ी कथा

इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान समय में मंदार पर्वत बिहार राज्य के बांका जिले में स्थित है। इस पर्वत के तल पर पापहरणी कुंड है। धार्मिक मत है कि पापहरणी सरोवर में स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग से छुटकारा मिलता है। साथ ही जाने अनजाने में किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। हर वर्ष 14 जनवरी को मंदार पर्वत के प्रांगण में मेला लगता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarWed, 29 May 2024 08:49 PM (IST)
Kachhap Avatar: मंदराचल पर्वत के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने लिया था कच्छप अवतार, पढ़ें इससे जुड़ी कथा
Kachhap Avatar: मंदराचल पर्वत के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने लिया था कच्छप अवतार

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kachhap Avatar: गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त गुरुवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए करती हैं। वहीं, अविवाहित लड़कियां शीघ्र विवाह के लिए गुरुवार का व्रत करती हैं। धार्मिक मत है कि गुरुवार का व्रत करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों की मानें तो गुरुवार का व्रत करने या गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है। गुरु की कृपा से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। सनातन शास्त्रों में भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन है। इनमें एक कच्छप अवतार है, जिसे कूर्म अवतार भी कहा जाता है। भगवान विष्णु ने  समुद्र मंथन के समय कूर्म अवतार लिया था। आइए, इस अवतार से जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं-

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समुद्र मंथन

सनातन शास्त्रों के अनुसार, चिरकाल में ऋषि दुर्वासा के श्राप के चलते स्वर्ग लक्ष्मी विहीन हो गया। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए पुष्प को देवराज इंद्र ने अपने ऐरावत के माथे पर सजा दिया। दिव्य पुष्प के स्पर्श से ही ऐरावत तेजस्वी और ओजस्वी हो गया। वह पुष्प को नीचे गिराकर वन की ओर कूच कर गया। यह देख ऋषि दुर्वासा ने स्वर्ग लोक को लक्ष्मी विहीन होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के चलते ही मां लक्ष्मी स्वर्ग लोक से प्रस्थान कर गईं। मां लक्ष्मी के प्रस्थान करने से स्वर्ग का ऐश्वर्य खो गया। स्वर्ग के देवताओं का तेज भी क्षीण हो गया।

उस समय दानवों ने मौका परस्त होकर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में देवताओं की पराजय हुई। स्वर्ग से पदच्युत यानी बेदखल होने के बाद सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें स्थिति से अवगत कराया। ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को स्मरण दिलाया कि ये सब उनकी गलती की वजह से हुई है। अब इसका समाधान भगवान विष्णु ही निकालेंगे। आप सभी भगवान विष्णु के पास जाएं। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। भगवान विष्णु ने देवताओं की व्यथा सुनकर उन्हें समुद्र मंथन की सलाह देते हुए कहा कि समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत का पान कर आप सभी अमर हो जाएंगे। इसके बाद दानव कभी आपको परास्त नहीं कर पाएंगे।  

कच्छप अवतार

भगवान विष्णु की सलाह पर विचार कर स्वर्ग नरेश इन्द्र बोले-हे प्रभु! समुद्र मंथन कैसे किया जाएगा ? कृपा कर आप मार्ग प्रशस्त करें। तब भगवान विष्णु ने कहा- समुद्र मंथन और अमृत कलश की प्राप्ति हेतु आपको दानवों की सहायता लेनी पड़ेगी। हालांकि, एक चीज का अवश्य ध्यान रखना होगा कि दानव अमृतपान न कर सके। अगर दानव अमृत पान करने में सफल होते हैं, तो वे भी आपकी तरह अमर हो जाएंगे। इसके बाद आप दानवों को हराने में कभी सफल नहीं हो पाएंगे। आप समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग जी से सहायता ले सकते हैं।

कालांतर में देवताओं ने दानवों को समुद्र मंथन के लिए मना लिया। इसके बाद सभी सबसे पहले मंदार पर्वत के पास गए और उन्हें समुद्र मंथन की सूचना दी। इसके बाद वासुकि नाग के पास गए। वासुकि नाग ने सर्वप्रथम समुद्र मंथन में सहायता करने से मना कर दिया। हालांकि, जब देवताओं ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु की सलाह के बाद समुद्र मंथन किया जा रहा है। यह सुन वासुकि नाग ने समुद्र मंथन में सहायता करने की सहमति दे दी। इसके बाद निर्धारित तिथि पर समुद्र मंथन शुरू हुआ। हालांकि, उस समय मंदराचल पर्वत ने अपने बल का पराक्रम दिखाना शुरू कर दिया। मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा।

मंदराचल पर्वत के घमंड को देख ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से याचना की। ब्रह्मा जी बोले- हे प्रभु! मंदराचल पर्वत के अभिमान को आप ही तोड़ सकते हैं। अगर मंदराचल पर्वत यूंही मतवाला बना रहा, तो समुद्र मंथन कैसे होगा? आप कुछ कीजिए। उस समय भगवान विष्णु ने समुद्र में कच्छप अवतार लिया। इसके बाद मंदराचल पर्वत को अपने धर पर धारण कर लिया। उस समय मंदराचल पर्वत की एक नहीं चली। तब मंदराचल पर्वत को यह ज्ञात हुआ कि समुद्र में तैरने वाला कछुआ कोई और नहीं, बल्कि भगवान नारायण हैं। मंदराचल ने तत्क्षण क्षमा याचना की। इसके बाद देवता और दानवों ने वासुकि नाग और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया। इससे क्रमश:14 रत्न प्राप्त हुए। इनमें सबसे पहले विष और अंत में अमृत प्राप्त हुआ। अमृत पान कर देवता अमर हो गए। कालांतर में भगवान विष्णु की सहायता से देवताओं ने दानवों को परास्त कर स्वर्ग पर आधिपत्य स्थापित किया।

कहां है मंदार पर्वत?

इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान समय में मंदार पर्वत बिहार राज्य के बांका जिले में स्थित है। इस पर्वत के तल पर पापहरणी कुंड है। धार्मिक मत है कि पापहरणी सरोवर में स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग से छुटकारा मिलता है। साथ ही जाने अनजाने में किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। हर वर्ष 14 जनवरी को मंदार पर्वत के प्रांगण में मेला लगता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान विष्णु मकर संक्रांति तिथि पर मधु और कैटभ को दर्शन देने के लिए मंदराचल आते हैं। इस उपलक्ष्य पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पापहरणी में स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। पापहरणी सरोवर के मध्य में लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर है। 

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।