जो पूरे संसार के लिए बहुत ही मंगलकारी, शुभ और शांति देने वाला होता है
जिसमें मंत्रों के आगे श्रीगणेश की प्रतिष्ठा, ध्यान और नाम जप का भाव होता है, जो पूरे संसार के लिए बहुत ही मंगलकारी, शुभ और शांति देने वाला होता है।
शिवपुराण व अन्य हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी प्रणव यानी ॐ ऐसा अक्षर स्वरूप साक्षात् ईश्वर माना जाता है और मंत्र भी। इसलिए यह एकाक्षर ब्रह्म भी कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं में प्रणव मंत्र में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सामूहिक शक्ति समाई है। यह गायत्री और वेद रूपी ज्ञान शक्ति का भी स्त्रोत माना गया है। इसी तरह देव पूजा-पाठ के दौरान आपने गौर किया होगा कि वैदिक, पौराणिक या बीज मंत्र सभी की शुरुआत ऊँकार से होती है। असल में, मंत्रों के आगे ‘ॐ’ लगाने के पीछे का रहस्य धर्मशास्त्रों में मिलता है ।
शास्त्रों के मुताबिक पूरी प्रकृति तीन गुणों से बनी है। ये तीन गुण है – रज, सत और तम। वहीं ‘ॐ’ को एकाक्षर ब्रह्म माना गया है, जो पूरी प्रकृति की रचना, स्थिति और संहार का कारण है। इस तरह इन तीनों गुणों का ईश्वर ‘ॐ’ है। चूंकि भगवान गणेश भी परब्रह्म का ही स्वरूप हैं। उनके नाम का एक मतलब गणों के ईश ही नहीं गुणों का ईश भी है। यही वजह है कि ‘ॐ’ को प्रणवाकार गणेश की मूर्ति भी माना गया है।
श्रीगणेश मंगलमूर्ति होकर प्रथम पूजनीय देवता भी हैं। इसलिए ‘ॐ’ यानी प्रणव को श्री गणेश का प्रत्यक्ष रूप मानकर वेदमंत्रों के आगे विशेष रूप से लगाकर उच्चारण किया जाता है, जिसमें मंत्रों के आगे श्रीगणेश की प्रतिष्ठा, ध्यान और नाम जप का भाव होता है, जो पूरे संसार के लिए बहुत ही मंगलकारी, शुभ और शांति देने वाला होता है।