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मन में किसी के प्रति बुरा विचार लाना भी हिंसा है

अहिंसा का अर्थ हम प्राय: हिंसा के विलोमार्थी शब्द के रूप में लेते हैं, जिसका आशय जीवहत्या न करना और मांसाहार से दूर रहना आदि है। यह बात ठीक भी जान पड़ती है। मांसाहार जीवहत्या के बगैर संभव नहीं है। इसलिए दोनों ही हिंसा की श्रेणी में आते हैं। मौजूदा

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 14 Dec 2015 11:34 AM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2015 11:48 AM (IST)
मन में किसी के प्रति बुरा विचार लाना भी हिंसा है

अहिंसा का अर्थ हम प्राय: हिंसा के विलोमार्थी शब्द के रूप में लेते हैं, जिसका आशय जीवहत्या न करना और मांसाहार से दूर रहना आदि है। यह बात ठीक भी जान पड़ती है। मांसाहार जीवहत्या के बगैर संभव नहीं है। इसलिए दोनों ही हिंसा की श्रेणी में आते हैं। मौजूदा संदर्भ में सवाल उठता है कि क्या अहिंसा को एक सीमित दायरे में बांधा जा सकता है?

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जी नहीं, अहिंसा का क्षेत्र व्यापक है और अहिंसा का संक्षेप में अर्थ है - समस्त हिंसक वृत्तियों का त्याग। इन हिंसक वृत्तियों और इनके कारणों को जाने-समझे बिना हम मुक्ति नहीं पा सकते। दूसरों को सताना, दु:ख पहुंचाना हिंसा है, किंतु क्या खुद को सताना हिंसा नहीं? आदमी तीन तरह के होते हैं। पहले हैं परपीड़क, यानी ऐसे लोग जो दूसरों को सताकर सुकून अनुभव करते हैं। दूसरे, स्वपीड़क या आत्मपीड़क, अर्थात ऐसे लोग जिन्हें स्वयं को सताने में मजा मिलता है। धर्मांधता के वशीभूत होकर अत्यधिक कष्ट-पीड़ा और कांटों की सेज पर लेटने से लेकर आत्महत्या तक करने से ऐसे लोग नहीं चूकते।

अहिंसक वे हैं, जो इन दोनों के पार हैं। जो इन दोनों वृत्तियों का अतिक्रमण कर चुका है, यानी जो न दूसरों को और न ही स्वयं को सताता है, वह स्वस्थ व प्रसन्न् भाव से संतोषपूर्वक जीता है। इसके अतिरिक्त सबल वर्ग द्वारा निर्बल का किया गया किसी भी प्रकार का शोषण एक खतरनाक हिंसा है। कारण यह है कि इसमें शोषित व्यक्ति तिल-तिल कर मरता है।

यानी कड़वे वचनों द्वारा हिंसा एक खतरनाक हिंसा है। कड़वे वचन हमें इस तरह चोट पहुंचाते हैं कि हम जीवनभर नहीं भूलते। भगवान महावीर तो यहां तक कहते थे कि मन में किसी के प्रति बुरा विचार लाना भी हिंसा है। यानी नकारात्मक विचार उठा नहीं कि हिंसा हुई। कारण यह कि मन में उठे विचार ही भविष्य में उठने वाले कृत्य की आधारशिला रखते हैं। हम पहले विचार करते हैं और बाद में वही विचार नए कर्म की पृष्ठभूमि बनते हैं। स्पष्ट है कि हम एक स्वस्थ-प्रसन्न् जीवन तभी जी सकते हैं, जब हमारा मन इतना शुद्ध हो जाए कि किसी के प्रति हमारे मन में जरा भी बुरा विचार न उठे। यही सच्ची अहिंसा है।


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