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सेवा भाव: सेवा वही सार्थक होगी, जो बिना किसी शर्त, नि:स्वार्थ भाव से संपन्न की जाए

मनुष्य सहित समस्त चराचर जगत के पालक और रक्षक ईश्वर हैं। मनुष्य तथा अन्य जीवों की सेवा करने से हम ईश्वरीय विधान की अनुपालना में योगदान देते हैं। इसीलिए सेवा को सभी पंथों में पुण्य कर्म माना जाता है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 09:19 AM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 09:19 AM (IST)
सेवा भाव: सेवा वही सार्थक होगी, जो बिना किसी शर्त, नि:स्वार्थ भाव से संपन्न की जाए
सेवा भाव: सेवा वही सार्थक होगी, जो बिना किसी शर्त, नि:स्वार्थ भाव से संपन्न की जाए

मनुष्य सहित समस्त चराचर जगत के पालक और रक्षक ईश्वर हैं। मनुष्य तथा अन्य जीवों की सेवा करने से हम ईश्वरीय विधान की अनुपालना में योगदान देते हैं। इसीलिए सेवा को सभी पंथों में पुण्य कर्म माना जाता है। सेवा के लिए परहित का भाव अनिवार्य है। सेवा वही सार्थक होगी, जो बिना किसी शर्त, नि:स्वार्थ भाव से संपन्न की जाए। धन-संपदा, पद और प्रसिद्धि के उद्देश्य से संपादित कार्य सेवा नहीं, अपितु सेवा का आडंबर है।

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निष्ठा से, स्व-अर्जित में से एक अंश जरूरतमंद को देना सेवा का मुख्य घटक है। वही तीर्थाटन फलीभूत होता है जिस पर व्यय भी अपनी शुद्ध कमाई से किया जाए, अनैतिक आय या अनुदान से नहीं। सेवाकर्मी श्रद्धा और सामथ्र्य अनुसार दूसरे व्यक्ति या संस्था को उसकी आवश्यकता या अपेक्षा के अनुसार धन, वस्तु, सुविधा या सेवा प्रदान करते हैं।

असमर्थ, वंचित, निर्धन की सेवा धन, वस्त्र आदि देकर तथा मान्य व्यक्ति को उसके उपयोग की वस्तु प्रदान कर की जा सकती है। बेसहारा बच्चों का संभरण, उनकी शिक्षा या चिकित्सा में सहायता उच्चस्तरीय सेवा है। वृद्धजनों की सेवा इतनी भर है कि उन्हें स्वेच्छा से साथ रखें, उनका खानपान सुनिश्चित हो, उनका अपमान या उपेक्षा न हो।

सेवा की प्रक्रिया में सेवाभोगी और उससे अधिक सेवादार लाभान्वित होते हैं। पहले पक्ष को उस आवश्यक सामग्री या सेवा की आपूर्ति होती है जो दूसरे पक्ष के पास आवश्यकता से अतिरिक्त है। निम्न सोच के व्यक्ति को सेवा की नहीं सूझती, वह इसे तुच्छ समझता है।

कार्य कोई भी छोटा नहीं होता। गुरुद्वारे या मंदिर में दूसरों के जूते चमकाने, प्रसाद खिलाने या बर्तन-भांडे साफ करने से किसी का दर्जा नहीं गिरता। सेवा की आड़ में कुछ कारोबारी ‘सेवा का मौका दें’ आदि घोषणाओं से घिनौने व्यापारिक या हित साधते दिखते हैं। सेवा एक पुनीत, मानवीय कृत्य है। मनोयोग से सेवा करने वाला सद्गति को प्राप्त होता है।

हरीश बड़थ्वाल


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