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वो कौन से कर्ज हैं, जिनसे आप नहीं पा सकते पूर्ण मुक्ति, नवरात्रि में भी करें पितरों को याद

आप नवरात्रि की पूजा कर रहे होंगे और नवमी की तैयारियां भी चल रही होंगी पर इस मौके पर हम एक बार फिर आपको अपने पूर्वजों की याद दिलाते हैं। श्राद्ध जा चुके हैं और आपने उन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों को भरपूर याद किया।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 02:00 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 02:00 PM (IST)
वो कौन से कर्ज हैं, जिनसे आप नहीं पा सकते पूर्ण मुक्ति, नवरात्रि में भी करें पितरों को याद
मनुष्य जीवन में तीन ऋण मुख्य है। ये हैं 'देव ऋण', 'ऋषि ऋण', और 'पितृ ऋण'।

नवरात्रि चल रहे हैं। आप माता की पूजा कर रहे होंगे और नवमी की तैयारियां भी चल रही होंगी, पर इस मौके पर हम एक बार फिर आपको अपने पूर्वजों की याद दिलाते हैं। श्राद्ध जा चुके हैं और आपने उन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों को भरपूर याद किया। यहां पूर्वजों की फिर से याद दिलाना इसलिए जरूरी है कि हमारे वंश के पुरोधा साल में महज 15 दिन नहीं, बल्कि हर दिन याद किए जाने चाहिए।

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शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य जीवन में तीन ऋण मुख्य है। ये हैं 'देव ऋण', 'ऋषि ऋण', और 'पितृ ऋण'। शास्त्र कहते हैं कि देव ऋण यज्ञादि द्वारा, ऋषि ऋण स्वाध्याय और पितृ ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारा जाता है। इस ऋण का उतारा जाना जरूरी होता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया, हमारी उम्र, आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए कार्य और तकलीफें उठाईं, उनके ऋण से मुक्त हुए बगैर हमारा जन्म निरर्थक है।

पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज पितृ लोक से पृथ्वी पर इस आशा के साथ आते हैं कि उनके परिवार वाले उन्हें पिंडदान कर संतुष्ट करेंगे। ऐसा न होने पर अतृप्त इच्छा लेकर लौटे पितर दुष्ट या बुरी शक्तियों के अधीन हो जाते हैं। मान्यता है कि इसके चलते घर में कलह, झगड़े, पैसे का न रुकना, नौकरी का अभाव, गंभीर बीमारी, हालात अनुकूल होने के बाद भी शादी का न होना या टूटना, बच्चे न होना या विकलांग बच्चों का होना आदि परेशानियां होने लगती हैं, इसीलिए श्राद्ध पक्ष में उनकी फिर से सेवा की जाती है।

लेकिन यहां हमारा कहना है कि अपने पूर्वजों को सिर्फ पन्द्रह दिन में नहीं, हमेशा स्मरण में रखिए। चाहे नवरात्रि हो, दिवाली या होली। पितरों को दैनिक पूजा में स्मरण कीजिए। प्राय मांगलिक कार्यों के दौरान भी गणपति को निमंत्रण के बाद पितरों का आह्वान किया जाता है। साथ ही किसी भी मांगलिक कार्य में पित्रों को भोग गणेश जी के ठीक बाद लगाया जाता है। ये परम्पराएं भी बताती हैं, कि पूर्वजों को हमेशा जहन में रखना चाहिए।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '


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