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वर दे वीणावादिनि वर दे...

इन गीतों में संबंधों की अनेक वर्जनाएं टूट जाती हैं। वसंत युवता का प्रतीक है। एक दूसरे के प्रति सघन अनुभूति प्रदर्शित करने की ऋ तु का नाम वसंत है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Feb 2017 12:35 PM (IST)Updated: Wed, 01 Feb 2017 12:48 PM (IST)
वर दे वीणावादिनि वर दे...
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प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य और संगीत की ऋतु है वसंत। ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती आत्मा की उदासीनता खत्म कर ज्ञान के दीपक से अंतर्मन को प्रकाशित करने का संदेश देती हैं।

भारतीय वर्ष का अंत और आरंभ, दोनों वसंत में ही होते हैं। इससे भारतीय चिंतन की रंग-संरचना, काल की अवधारणा और दृष्टिबोध का पता चलता है। वसंत प्रेम का ऐसा कुंभ है, जहां हम सजीवन स्नान करते रहते हैं। माघ शुक्ल पंचमी से संगीत, साहित्य और कलाएं अवगाहन करती रहती हैं। वसंत से सरस्वती का वृहत हेतु है। सरस्वती के हेतु से पंचमी से चारों ओर प्रकृति में अद्भुत दृश्य दिखने लगते हैं। इसीलिए इस दिन को अबूझ मुहूर्त वाला भी माना जाता है, यानी सब कुछ शुभ व मांगलिक। वसंत कविता और कला का घर है। यदि हम सुनने की कोशिश करें, तो प्रत्येक पुष्प, प्रत्येक पत्ती कविता-पाठ करती हुई मालूम देती है। हमारी आभा का सर्वोत्तम प्राण केंद्र वसंत है। किसके यहां दुख नहीं है, किंतु वसंत दुख को ठेलकर एक गहन प्राकृतिक राग देता है। यह जीवन और कला को संयुक्त करता है।

आंतरिक मनोभावों में आत्मीय उल्लास! हम जीना सीखें, इंद्रिय व वैयक्तिकता का द्वार खोलें, सबको अपना बनाएं, सबका दुख-दर्द, हर्ष-विषाद अपना बनाएं। इसके बाद कविता, चित्रकला, साहित्य का प्रभाव दोगुना हो जाता है। केवल कवि की कल्पना में ही वसंत रमणीय नहीं है। सचमुच में वसंत के आगमन से प्रकृति रम्य व नयन-चारु लगती है। पर्यावरण व पारिस्थितिकी भी सम हो जाते हैं। शीत व ग्रीष्म का मध्यमार्ग। प्रकृति की छटा चारों ओर दिखने लगती है। हरित संहिता में लिखा है- वसंत के समय प्रमुदित कोकिलों की कूक से अरण्य, उद्यान गूंज उठते हैं। वन-उपवन तथा पर्वत श्रेणियां फूलों के सुवास से सुवासित हो उठती हैं। 'संगीत दामोदर' के अनुसार, छह राग व छत्तीस रागिनियां हैं। इन रागों के मध्य वसंत एक राग है। श्री राग, वसंत, भैरव, पंचम, मेघराग तथा वृहन्नाट-ये छह राग पुरुषवाद वाच्य हैं। कहते हैं कि वसंत पंचमी को वसंत राग सुनना अभीष्ट को पाना है। सरस्वती के आठ अंग माने जाते हैं-लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभाव और धृति। निराला ने भी जब 'वर दे, वीणा वादिनि वर दे' लिखा होगा, उसके पहले उनके संस्कार में सरस्वती का दशाक्षर मंत्र रहा होगा- 'वद् वद् वाग्वादिनि वाहिन वल्लभा।' मेधा, प्रज्ञा, प्रभा, विद्या, धी, धृति, स्मृति, बुद्धि, विद्यैश्र्वर्य-ये सभी इनके पीठ देवता हैं।

भारतीय परंपरा में पंचशक्तियां मानी जाती हैं-राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा, सरस्वती। जो वाक् अधिष्ठात्री और शास्त्रज्ञान दायिनी हैं, उनका नाम सरस्वती है। सरस्वती का ही विस्तार है वसंत। उनका ही स्वरूप है वसंत। यही वजह है कि यह ऋ तु पुराकाल सेमनुष्य को सम्मोहित करती रही है। ज्ञान की देवी सरस्वती, जो प्राणियों के हृदय को सरस जल की तरह पवित्र और स्वच्छ बनाती है। सरस्वती ही वेद (ज्ञान) की उत्पत्ति का कारण है। अत: ज्ञानी जनों की आराध्या हैं और उनके कारण ही समस्त लोकों का आविर्भाव होता है। सरस्वती का श्वेत वर्ण मोक्ष और सात्विकता का प्रतीक है। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक होती है। वीणा धारण करने का अभिप्राय है कि केवल पुस्तकों का ज्ञान पर्याप्त नहीं है, बल्कि कला क्षेत्र में भी ज्ञान आवश्यक होता है। संगीत से जीवन में मधुरता आती है।

सरस्वती का एक अर्थ यह भी है- अपने संपूर्ण अस्तित्व का सृजनात्मक राग। इस अनगढ़ आदिम ऊष्मामय राग को गाते हुए हम विलक्षण सौंदर्य का अनुभव कर सकते हैं।इससे न सिर्फ हमारी आत्मा की उदासीनता धुल जाती है, बल्कि मस्ती भरी भाषा का आविष्कार भी करती है। वह कल्पनाशीलता, पुनर्नवीकरण, प्रेम, सम्मोहन का जादू रचती है। इसमें एक लालित्य है। पत्र-पुष्प, खान-पान, गीत-संगीत, वस्त्र-विन्यास आदि सब में एक नई ज्यामिति होती है। वसंत ऋतु में ही होली के गीत प्रारंभ हो जाते हैं। होली के गीतों में मादकता, ऐंद्रिकता, मस्ती, उल्लास किसानों के जीवन के विविध प्रसंग आदि आते हैं। इन गीतों में संबंधों की अनेक वर्जनाएं टूट जाती हैं। वसंत युवता का प्रतीक है। एक दूसरे के प्रति सघन अनुभूति प्रदर्शित करने की ऋ तु का नाम वसंत है। आज जबकि कला की दुनिया उद्योग और धन में बदलती जा रही है, तो वसंत में मौन की भाषा और रंग के रस की तलाश है। प्रसन्न धरती और उसकी अनेक भव्यताओं के लिए हमारी उत्कट चाहत व तीव्र लालसा वसंत है। हमसे यह उम्मीद तो रखी ही जा सकती है कि इस वसंत से ही सही, हम वासंतिक रागों का वितान चतुर्दिक तने रहने के संदर्भ में अपने उत्तरादायित्व के प्रति औपचारिकता से नहीं, सहृदयता से प्रस्तुत होंगे। चिंतन-मनन से लेकर दिन से रात तक चलने वाली अपनी दिनचर्या को सरस्वती के वास्तविक संदेश से ओत-प्रोत रखेंगे।


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