आज बहन यमुना के घर आएंगे यमराज
पंचकल्याणी पर्व श्रृंखला का अंतिम पर्व है 'भैया दूज'। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहन उसकी दीर्घायु, यशस्वी और सर्वगुण संपन्न होने की कामना करती है। कहते हैं कि स्वयं यमराज भी अपनी बहन यमुना से टीका कराने इस दिन यमनोत्री धाम पहुंचते हैं, इसलिए भैयादूज को यमद्वार बंद रहते हैं। परंपरा के अनुसार इसी दिन शीतकाल
देहरादून। पंचकल्याणी पर्व श्रृंखला का अंतिम पर्व है 'भैया दूज'। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहन उसकी दीर्घायु, यशस्वी और सर्वगुण संपन्न होने की कामना करती है। कहते हैं कि स्वयं यमराज भी अपनी बहन यमुना से टीका कराने इस दिन यमनोत्री धाम पहुंचते हैं, इसलिए भैयादूज को यमद्वार बंद रहते हैं।
परंपरा के अनुसार इसी दिन शीतकाल के लिए यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यह ऐसा दिन है जब यमुना स्नान करने से शनि दोष और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। दीपावली के तीसरे दिन पड़ने वाला भैयादूज का त्योहार भाई-बहन के स्नेह प्रतीक है। रक्षाबंधन के दिन जहां बहनें भाई के घर आकर उनका टीका करतीं हैं, वहीं भैयादूज को भाई-बहन के घर जाता है। पौराणिक प्रसंग के अनुसार भैयादूज का पर्व यमराज (काल) और उनकी बहन यमुना के स्नेह का प्रतिबिंब है। यमराज सूर्य के पुत्र और शनि के भाई हैं। इस दिन वह यमलोक छोड़कर बहन यमुना से मिलने यमनोत्री पहुंचते हैं।
इसलिए कहा जाता है कि इस पावन मौके पर यमलोक के द्वार बंद रहते हैं। ज्योतिषाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद बताते हैं कि भैयादूज के दिन बहन घर आए भाई का तिलक कर उसकी संपन्नता, समृद्धि, दीर्घायु एवं यश की कामना करती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। इस दिन यमुना नदी में स्नान करने से जहां शनि देव की कृपा बरसती है, वहीं अकाल मृत्यु का भय भी जाता रहता है। इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि हम यमुना नदी को स्वच्छ रखने का संकल्प लें, ताकि मानव समाज पर इसकी कृपा बनी रहे। कहते हैं कि जल ही जीवन है और जल स्वच्छ एवं निर्मल रहेगा तो जीवन के संजीवनी का काम करेगा।
भाई-बहन के प्यार को न लगे नजर
जब तक आज का अखबार आपके हाथों तक पहुंचेगा, तब तक शायद घरों में भैया दूज की तैयारियां शुरू हो चुकी होंगी। इस दिन बहनों के हाथों माथे पर तिलक लगाकर भाई खूब इतराते हैं। भाई-बहन के अगाध स्नेह का यह पर्व हंसी-खुशी आगे बढ़ता रहे, इसके लिए बहनों की रक्षा का संकल्प लेना भी जरूरी है।
क्योंकि, इस समय बहनों के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है। बच्चियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में बालक-बालिका लिंगानुपात पिछले एक दशक में 13 अंक गिरा है। इस समय प्रति एक हजार बालकों के मुकाबले सिर्फ 886 बालिकाएं ही हैं। चिंताजनक पहलू यह कि गांवों के मुकाबले शहरों के सुशिक्षित समाज में बच्चियां नहीं पनप पा रही हैं।
साक्षरता दर में देहरादून जिला सबसे आगे (85.24 फीसद) है, जबकि 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के लिंगानुपात में देहरादून का स्थान आठवां है। साक्षरता दर में दूसरे नंबर पर विराजमान नैनीताल देहरादून से महज एक पायदान ऊपर है। पढ़े-लिखे शहरों में बच्चियों की संख्या में इस कदर कमी आना भविष्य के गंभीर खतरे की ओर इशारा है। इस खतरे को इसी बात से समझा जा सकता है कि राज्य के 10 जिलों में प्रति हजार बच्चों पर 900 बच्चियां भी नहीं हैं। नोट: लिंगानुपात प्रति हजार बालकों में बालिकाओं की संख्या है।
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