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यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है

रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 09 Jun 2016 04:41 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jun 2016 04:47 PM (IST)
यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है

साल के बारह महीनों में रमजान का महीना मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है। यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है जिसमें हर आदमी अपनी रूह को पवित्र करने के साथ अपनी दुनियादारी की हर हरकत को पूरी तत्परता के साथ वश में रखते हुए केवल अल्लाह की इबादत में समर्पित हो जाता है। जिस खुदा ने आदमी को पैदा किया है उसके लिए सब प्रकार का त्याग मजबूरी नहीं फर्ज बन जाता है। इसीलिए तकवा लाने के लिए पूरे रमजान के महीने रोजे रखे जाते हैं।

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रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पानसहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर संयम कर जिसे अरबी में "सोम" कहा जाता है आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही तराबी और नमाज पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की आत्मा (रूह) पाक-साफ होती है। अपनी गलतियों को सुधारने का मौका भी रमजान के रोजे में मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है। इसीलिए इन दिनों जकात देने का खासा महत्व है।

वेब दुनियां के अनुुसार जकात का मतलब है अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत गरीबों में बाँटना। वस्तुतः जकात देने से आदमी के माल एवं कारोबार में खुदा बरकत करता है। उन्होंने कहा इस्लाम में रोजे, जकात और हज यह तीनों फर्ज हैं मजबूरी नहीं। अतः 12 साल से ऊपर के बालिक रोजा रखना अपना फर्ज समझते हैं। ईद से पहले फितरा दिया जाता है जिसमें परिवार का प्रत्येक व्यक्ति ढाई किलो के हिसाब से गेहूँ या उसकी कीमत की रकम इकठ्ठा कर उसे जरूरतमंदों में बाँटता है।


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