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होली आई रे.होली में पानी नहीं, गुलाल संग खुशियां लुटाएं

मौज-मस्ती व खुशियों के रंगों का त्योहार यानी होली लो आ गई लेकिन जरा संभल कर मनाएं पर्व। इस फागुनी बयार में पानी नहीं अबीर व गुलाल उड़ाकर खुशियां लुटाएं। रंगभरी एकादशी से रंगों का त्योहार होली की शुरुआत होती है। साथ ही शुरू होता है एक दूसरे को रंगों से सराबोर करने का दौर। चेहरे से रंग न उतरे इसके ि

By Edited By: Published: Sat, 15 Mar 2014 03:01 PM (IST)Updated: Sat, 15 Mar 2014 03:06 PM (IST)
होली आई रे.होली में पानी नहीं, गुलाल संग खुशियां लुटाएं

वाराणसी। मौज-मस्ती व खुशियों के रंगों का त्योहार यानी होली लो आ गई लेकिन जरा संभल कर मनाएं पर्व। इस फागुनी बयार में पानी नहीं अबीर व गुलाल उड़ाकर खुशियां लुटाएं।

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रंगभरी एकादशी से रंगों का त्योहार होली की शुरुआत होती है। साथ ही शुरू होता है एक दूसरे को रंगों से सराबोर करने का दौर। चेहरे से रंग न उतरे इसके लिए लोग नए-नए तरीके अपनाते हैं लेकिन इनसे खुशियां नहीं मिलतीं। बल्कि जहां त्वचा को नुकसान होता है वहीं पानी बर्बाद होने से भूजल संकट गहराने लगता है। रंग में शामिल घातक रसायन मुंह व आंख में चले जाते हैं जो दिल व किडनी भी खराब कर सकते हैं। अनुमान के मुताबिक पर्व पर प्रति व्यक्ति 140 लीटर पानी अतिरिक्त खर्च होगा। इसमें रंग से हुए गंदे घर की सफाई पर 40 लीटर, नहाने व कपड़े धोने के लिए 80 लीटर, रंग खेलने पर 20 लीटर पानी खर्च होगा। आम दिनों में 33 सौ लाख लीटर पानी खर्च होता है लेकिन पर्व पर महानगर में करीब छह लाख लोग होली मनाते हैं। ऐसे में करीब दो सौ लाख लीटर अतिरिक्त पानी की जरूरत होगी।

पानी मूल्यवान है इसका अपव्य न करें। जरूरत के हिसाब से ही पानी खर्च करें। अबीर व गुलाल से होली खेलें तो पानी बचेगा। शांति से होली पर्व मनाएं। यदि कोई समस्या हो तो अधिकारियों को फोन कर सूचित करें।

पानी में घुलने वाला रंग स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। इसके इस्तेमाल से चर्म रोग के साथ ही हर्ट व किडनी भी प्रभावित होती है। आंखों को ज्यादा नुकसान होता है। इसलिए प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करें।

तन गोकुल तो मन वृंदावन-

गंगा के पवित्र तट रामघाट स्थित श्री विश्वनाथ ब्रह्मचर्य संस्कृत विद्यालय में शुक्त्रवार को स्व. जमुना देवी की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुक्रवार को अंतिम दिन था। इसमें श्री विश्वनाथ नारायण पालंदे महाराज ने कथा का निष्कर्ष बताया। कहा कि हमारा तन यानी शरीर गोकुल है तो मन वृंदावन है। श्री कृष्ण की समस्त लीलाएं हमारे शरीर और मन के अंदर होती हैं। इसलिए दोनों को हमेशा शुद्ध रखना चाहिए। कलियुग का धर्म ही व्यक्ति के तन व मन को अशुद्ध बनाना है।

यदि व्यक्ति खुद के प्रयासों से अन्त:मन को शुद्ध व पवित्र बनाता है तो उसके द्वारा किया हुआ हर संकल्प पूरा होता है। यही कलियुग की विशेषता है। सत्कर्मो का आचरण करते हुए प्रेम, दया का भाव दिल में रखते हुए जो भक्ति करता है तो हर जीवन मंगलमय हो जाएगा। इस मौके पर सुदामा चरित्र की झांकी दिखाई गई। कथा सुनने के लिए डा. अंजनी मिश्र, सर्वेश्वरी राजहंस, राम रस्तोगी, दिलीप व्यास, रवींद्र मिश्र, अमित मिश्र, अंकित रस्तोगी, नेहरू पांडेय आदि प्रमुख लोग उपस्थित थे।


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