इस क्रम से पति-पत्नी दोनों दीर्घायु होते है
सारा दिन निर्जल रहकर करव चौथ का व्रत पूरा करना किसी बड़े टास्क से कम नहीं। मगर करवा चौथ के दिन महिलाएं इसे बेहद आसानी से कर लेती हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं कि दूसरों की देखादेखी खुद के शरीर के साथ न देने के बावजूद यह व्रत किया जाए।
सारा दिन निर्जल रहकर करव चौथ का व्रत पूरा करना किसी बड़े टास्क से कम नहीं। मगर करवा चौथ के दिन महिलाएं इसे बेहद आसानी से कर लेती हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं कि दूसरों की देखादेखी खुद के शरीर के साथ न देने के बावजूद यह व्रत किया जाए।
हर किसी व्यक्ति की तासीर अलग होती है, इसलिए भले ही खाते-पीते करिए मगर कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें। सूर्योदय के पहले जो लोग सरगी खाते हैं, उन्हें तैलीय और ज्यादा मीठा खाने से बचना चाहिए क्योंकि मीठा खाने से भूख व प्यास जल्दी लगने लगती है।
यदि गुनगुना पानी पी सकती हों तो 3-4 ग्लास पी लें। इससे शरीर का तापमान सामान्य रहता है और सारा दिन ज्यादा प्यास नहीं लगती। अगर व्रत बिल्कुल न सधे तो फलाहार या फिर दूध, चाय ली जा सकती है। नहीं तो एसिडिटी बढ़ने का खतरा हो जाता है।
व्रत पूरा होने के बाद भी एकदम से ज्यादा पानी न पिएं और खाना भी हल्का लें। साथ ही खाना ऐसा हो जिसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स हों ताकि आपके शरीर में थोड़ी स्फूर्ति आ सके। व्रत के इस पूरे दिन में पूजा की तैयारी और थाली सजाने से लेकर खुद को तैयार करने में अपने आप को व्यस्त रखें। इससे आपका ध्यान खाने की तरफ कम जाएगा और भूख भी नहीं लगेगी।
करवा है व्रत का संकल्प
करवा चौथ कार्तिक माह में आती है और कार्तिक में मिट्टी के पात्र में जल या दूध भरकर पूजन विधान करना शुभ माना जाता है। वैसे भी करवा कलश का ही एक रूप है, यही वास्तव में इस व्रत का संकल्प भी है।
माना जाता है कि इस दिन करवे से अर्घ्य चंद्रमा द्वारा स्वीकार किया जाता है। करवा चतुर्थी करकचतुर्थी के नाम से जानी जाती है। करक का अर्थ है वह पात्र जिसमें संकल्प से श्रद्धा के अनुसार तपस्वी रहकर अपने व्रत का नियमन किया जा सके। यह करक चतुर्थी के व्रत का साक्षी माना जाता है।
चतुर्थी के देवता गणेश व चंद्रमा के समक्ष सौभाग्यवती स्त्रियां पति के हाथों करवे का जल ग्रहण करती हैं। इस क्रम से पति-पत्नी दोनों को दीर्घायु प्राप्त होती है।
पूजन में जरूरी
करवा चौथ की पूजा में जल से भरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्हड़ यानी करवा, ऊपर दीपक पर रखी विशेष वस्तुएं, श्रंगार की सभी नई वस्तुएं जरूरी होती है। पूजा की थाली में रोली, चावल, धूप, दीप, फूल के साथ दूब अवश्य रहती है। शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को भी पाट पर दूब में बिठाते हैं।
बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर भी सभी देवताओं को विराजित करने का विधान है। अब तो घरों में चांदी के शिव-पार्वती पूजा के लिए रख लिए जाते हैं।