गयाजी में श्राद्ध करने से मुक्त होता 'पितृदोष'
पितृदोष के कारण रोजी रोजगार की अवनति, विवाह बाधा, अविवाहित होना, संतान न होना, पुत्र सुख का अभाव, अन्न-धन का अभाव, रोग आदि होता है। इसलिए पितृदोष होने के कारण ग्रहों की अशुभ फलप्रद स्थिति के अनुसार शांति कराना चाहिए। कुंडली से कैसे जाने पितृ-ऋण- जब सौर मंडल के अधिष्ठाता ग्रह सूर्य की शनि के साथ युति का दृष्टि अथवा दृष्टि-
गया। पितृदोष के कारण रोजी रोजगार की अवनति, विवाह बाधा, अविवाहित होना, संतान न होना, पुत्र सुख का अभाव, अन्न-धन का अभाव, रोग आदि होता है। इसलिए पितृदोष होने के कारण ग्रहों की अशुभ फलप्रद स्थिति के अनुसार शांति कराना चाहिए।
कुंडली से कैसे जाने पितृ-ऋण- जब सौर मंडल के अधिष्ठाता ग्रह सूर्य की शनि के साथ युति का दृष्टि अथवा दृष्टि-विनिमय होने पर पितृ-ऋण होना ज्ञात किया जा सकता है। तुला राशिस्थ, नीच के सूर्य और उच्च के शनि की जन्मकालीन युति वाली स्थिति विपत्तिकारक पितृ परिलक्षित करती है।
सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु कुंडली में विराजमान होने से ग्रहण योग कहलाता है। इसे भी पितृ दोष माना गया है। इसके प्रभाव से नाना प्रकार की आपत्तियां जातक को घेरे रहती हैं।
जन्मकुंडली के प्रथम द्वितीय एवं द्वादश भाव (1, 2 एवं 12) में राहु की स्थिति पितृदोष निर्मित करती है। किसी की जन्मकुंडली में गुरू और राहु की चांडाल योग वाली युति होने के जातक पितृ ऋण से ग्रसित होता है।
कुंडली में सूर्य-शनि-राहु की त्रिपाप ग्रह वाली युति पितृ दोष कारक होती है। चंद्रमा और केतु साथ-साथ कुंडली में बैठे होने से पितृदोष का आभास होता है।
पितृदोष शांति का उपाय- गया धाम में आकर श्रद्धा के साथ पितरों के नाम और गोत्र आदि का संकल्प लेकर पिंडदान करने से पितरों को अक्षय लोक की प्राप्ति हो जाती है। गयाधाम के अधिष्ठातृ देव भगवान गदाधर नाथ है। इस क्षेत्र में उनके गदाधर स्त्रोत का पाठ करने से पितृ-तृप्ति सहित सर्व सौख्य की प्राप्ति होती है। श्रीमद भगवद् गीता का निरंतर पाठ स्वयं करने या समय-समय पर श्रेष्ठ ब्राहमण, कुलगुरु या पुरोहित से पाठ करनवाने से पितृगणों की प्रसन्नता अवश्यंभावी होती है। साथ ही साथ यज्ञ, हवन एवं विप्रभोज भी करना चाहिए।
गरुड़ पुराण का यथोचित अवसर पर पठन-पाठन अथवा श्रवण करना पितृदोष शमन का उत्तम उपाय है। फलस्वरूप जातक को पितृ-प्रसन्नता से सुख-शांति का आभास होने लगता है। त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण व नागबलि श्राद्ध योग्य ब्राहमण के सानिध्य में करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और अपने कुल की सदा रक्षा करते है।
श्रीमद भागवत का एक सप्ताह चलने वाला आद्यंत पाठ भागवत कथा वाचक योग्य ब्राहमण के घर में करवाने से पितरों की तृप्ति होती है और उनकी प्रसन्नता से पितृदोष शांत होता है।