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आवश्यकता से अधिक धन दुख और भय का कारण बनता है

नाथ संप्रदाय के आदि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ एक बार एक सुंदरी के मोह में आसक्त हो गए। शिष्य गोरखनाथ के समझाने पर वह सुंदरी को छोड़कर जाने लगे तो सुंदरी ने उन्हें एक सोने की ईंट दी। गुरु-शिष्य दोनों चले गए। वह एक जंगल में पहुंचे। गुरुजी बोले, 'गोरख! आगे कोई

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2016 03:01 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2016 03:08 PM (IST)
आवश्यकता से अधिक धन दुख और भय का कारण बनता है

नाथ संप्रदाय के आदि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ एक बार एक सुंदरी के मोह में आसक्त हो गए। शिष्य गोरखनाथ के समझाने पर वह सुंदरी को छोड़कर जाने लगे तो सुंदरी ने उन्हें एक सोने की ईंट दी। गुरु-शिष्य दोनों चले गए। वह एक जंगल में पहुंचे। गुरुजी बोले, 'गोरख! आगे कोई भय तो नहीं है?' गोरखनाथ जी ने कहा, 'नहीं गुरुवर! हम फकीरों को भय कैसा?'

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जब गुरु आगे बढ़े तो फिर से उन्होंने गोरखनाथ से यही सवाल किया। इस बार गोरखनाथ जी को संदेह हुआ। जब गुरुजी नजदीक ही बहती नदी में जल पी रहे थे तो गोरखनाथ जी उनकी झोली संभाले हुए थे। जब गोरखनाथ जी ने झोली देखी तो उसमें सोने की ईंट रखी हुई थी। उन्होंने तुरंत उस ईंट को नदी में फेंक दिया। झोली हल्की न लगे ऐसे में उन्होंने कुछ कंकर मिट्टी भर दी।

गुरुजी जल पीकर गोरखनाथ के पास पहुंचे। झोली उठाई और आगे की ओर चल दिए। थोड़ी देर चलने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने गुरु गोरखनाथ से पूछा आगे कोई समस्या तो नहीं। गोरखनाथ ने कहा, 'हम समस्या को पीछे छोड़ आए हैं।' गुरुजी सहम गए और उन्होंने झोली को टटोला तो उसमें सोने की ईंट नहीं थी। इस तरह शिष्य गोरखनाथ ने 'अथ श्री ईंट पुराण' सुनाया। गुरुजी समझ गए कि वो माया के कारण ही भयभीत हो रहे थे।

संक्षेप में

आवश्यकता से अधिक धन दुख और भय का कारण बनता है। इसलिए धन का संग्रह उतना ही कीजिए, जिसमें आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति बेहतर तरीके से हो सके। बाक की धन दान करें। क्योंकि कलयुग में दान का सर्वश्रेष्ट माना गया है।


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