Move to Jagran APP

इसलिए लोक पर्व लोहड़ी को जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है

बसंत आगमन के साथ पौष महीने की आखिरी रात 13 जनवरी को मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाई जाती है लोहड़ी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 10 Jan 2017 02:29 PM (IST)Updated: Tue, 10 Jan 2017 03:59 PM (IST)
इसलिए लोक पर्व लोहड़ी को जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है

बसंत आगमन के साथ पौष महीने की आखिरी रात 13 जनवरी को मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाई जाती है लोहड़ी। यह पर्व लोगों में नई उमंग और उत्साह का संचार करता है। इसलिए इसे जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

loksabha election banner

इसके अगले दिन माघ महीने की संक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है। लोक पर्व लोहड़ी के उद्गम के बारे में कोई नहीं जानता। इसके रूप को देखकर लगता है कि इसकी जड़ें पंजाब की प्राचीन कृषि-संस्कृति के भीतर हैं। शायद सप्त सिंधु कहलाने वाले पुरातन पंजाब के निवासियों ने इसे शुरू किया होगा और अपने नए अन्न को अग्निदेव को अर्पित करने की रीत अपनाई होगी।

कहा जाता है कि तिल और रोड़ी मिलकर तिलौड़ी बना, जो बाद में भाषा के बहाव में 'लोहड़ी' बन गया।लोहड़ी पर्व को सती के आत्मदाह से भी जोड़ा जाता है। पिता दक्ष द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में पति शिव को आमंत्रित न करने से अपमानित व आहत होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। क्रुद्ध शिव ने दक्ष प्रजापति का सिर काट कर अग्नि को भेंट कर दिया। देवताओं की अनुनय-विनय से दक्ष को नवजीवन मिला और इसी दिन से यज्ञ में पूर्णाहुति डाली जाने लगी। मध्यकाल में दुल्ला भट्टी का प्रसंग लोहड़ी से जुड़ गया। उसके परोपकारी कार्यो की अनेक कहानियां पंजाब में प्रचलित है। कहते है कि एक गरीब की दो सुंदर बेटियां थी-सुंदरी और मुंदरी। इनकी सगाई भी हो चुकी थी, लेकिन एक दिन उस इलाके के हाकिम की बुरी दृष्टि उन बहनों पर पड़ गई। दुखी पिता की फरियाद दुल्ला भट्टी तक पहुंची। दुल्ले ने सुंदरी-मुंदरी को अपनी शरण में ले उनकी शादी संपन्न कराई। तब से इस घटना को गा कर याद किया जाता है-सुंदर मुंदरिए, हो।तेरा कौण विचारा, हो।दुल्ला भट्टी वाला, हो।दुल्ले दी धी विहाई, हो।खुशियां मनाने के लिए पंजाब के घर-घर में मनाई जाने वाली लोहड़ी अब भारत भर में मनाई जाती है। ्रमूंगफलियां, रेवडि़यां, मक्की के भुने दाने, तिल, गुड़ आदि सामग्री को मिलाकर बांटने को ही लोहड़ी बांटना कहा जाता है।उपले, लकडि़यां इकट्ठे कर घर के दरवाजे के आगे लोहड़ी जलाई जाती है। आग के इर्द-गिर्द बैठकर सभी अग्नि को तिल-मूंगफली, रेवड़ी, मक्की के दाने भेंट करते है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.