सिगोंटा के मंदिर में नाग दरबार, बैगाओं ने की विशेष पूजा
नागपंचमी पर जिला मुख्यालय से लगभग 5 किमी दूर स्थित ग्राम सिटोंगा में लगने वाला नाग दरबार लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। यहां नागपंचमी के दिन भक्तों के ऊपर नाग देवता के सवार होने की मान्यता है। नाग देवता के सवार होने पर श्रद्वालु अजीब हरकते करने लगते
जशपुरनगर । नागपंचमी पर जिला मुख्यालय से लगभग 5 किमी दूर स्थित ग्राम सिटोंगा में लगने वाला नाग दरबार लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। यहां नागपंचमी के दिन भक्तों के ऊपर नाग देवता के सवार होने की मान्यता है। नाग देवता के सवार होने पर श्रद्वालु अजीब हरकते करने लगते हैं,जिन्हें दूध व प्रसाद खिला कर पुजारी द्वारा शांत कराया जाता है। आधुनिक समय से ग्रामीण की इस परंपरा को आस्था माना जाता है वहीं विज्ञान में इसका महत्व अंधविश्वास से अधिक कुछ भी नही है।
सिटोंगा के इस अनोखे नाग दरबार के संबंध में मान्यता है कि माता मनसा देवी की कृपा से अपनी सौतेली मां के प्रताड़ना तंग भाई बहन नाग योनी में प्रवेश कर गए थे। इस दैवीय चमत्कार के बाद से ही यहां नाग दरबार का आयोजन होता आ रहा है। मंदिर के पुजारी लहरु बाबा ने बताया कि यह पूजा वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन की जाती है। इस विशेष पूजा में नाग और नागिन बांकी और श्री की पूजा की जाती है। देखने वालों को रोमांचित कर देने वाले इस विशेष पूजा में गांव के बैगा और ग्रामीण शामिल होते हैं । लोगों पर सवार होते हैं नाग देवता पूजा के दौरान कई लोगों पर नाग नागिन सवार हो जाते हैं और जिन पर नाग देवता की सवारी होती है वह सांप की तरह हरकत करने लगते हैं। सांप की तरह पानी में लोटते,तैरते व फुंकारते है ।
लहरु बाबा ने बताया कि पूजा के दौरान कुछ लोगों पर नाग देवता श्री और बाकी सवार हो जाते है और इस रूप में लोगों को अपना दर्शन देते हैं। कौन थे बाकी और श्री मंदिर के पुजारी लहरु बाबा ने बताया कि बहुत साल पहले इस खेत में धान की बुआई की गई थी जिसकी रखवाली दो भाई और बहन बांकी और श्री करते थे जो कि अत्यंत गरीब थे उसी समय माता मनसा देवी की कृपा इन दोनों भाई बहन पर हो गई और नागपंचमी के दिन ही खेत की रखवाली करते हुए दोनों को सांप का दो अंडा मिला। उस समय दोनों भूखे थे इसलिए दोनों ने निर्णय लिया कि आज का भोजन यही करेगें और श्री ने बांकी को घर आग लाने के लिए भेज दिया लेकिन काफी देर तक बांकी वापस नही आई तो भूख से बेचैन श्री ने सर्प के अंडे को कच्चा ही खा लिया और देखते ही देखते उसका आधा शरीर सर्प मे बदल गया और पास के तालाब में तैरने लगा । कुछ देर बाद जब बांकी आग लेकर वापस लौटी तो सब कुछ देखकर दंग रह गई । बांकी अपने भाई श्री से बहुत प्यार करती थी और उसने भी सर्प अंडा खा लिया और सर्प बन गई तभी से दोनों सांप के रूप में यहां रहने लगे । किवदंती है कि दोनों भाई बहन आज भी इस तालाब में रहते है।
अखाड़े की परंपरा हुई खत्म पहले जशपुर में कई स्थानों में नागपंचमी पर अखाड़े में कुश्ती की परंपरा थी पर वक्त के साथ यह परंपरा जिले में खत्म होती जा रही है। जानकारों का कहना है कि पहले लोगों के पास मनोरंजन का कोई साधन नही था और खेती के काम से फुर्सत मिलने बाद लोग कुश्ती की प्रतियोगिताओं का आयोजन करते थे लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है और नागपंचमी में होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता लगभग खत्म हो गई है ।