जहां सत्संग होता है, वहां स्वर्ग होने की मान्यता है
शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए साबुन या डिटर्जेन्ट काम आता है, लेकिन मन के विकारों की सफाई तो सत्संग से ही संभव है। जहां सत्संग होता है, वहां स्वर्ग होने की मान्यता है। स्वर्ग और नर्क का चयन हमारे विवेक पर निर्भर है।
इंदौर। शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए साबुन या डिटर्जेन्ट काम आता है, लेकिन मन के विकारों की सफाई तो सत्संग से ही संभव है। जहां सत्संग होता है, वहां स्वर्ग होने की मान्यता है। स्वर्ग और नर्क का चयन हमारे विवेक पर निर्भर है। सीधे शब्दों में कहें तो दुष्ट प्रवृत्ति जहां से चली जाए, वह स्थान स्वर्ग समान बन जाता है। सज्जनों की संगति ही सत्संगति कहलाती है। यह बात कानपुर के मानस मर्मज्ञ पं. आलोक मिश्र रामायणी ने सोमवार को कही। वे गीता भवन में आयोजित रामचरित मानस सम्मेलन के दूसरे दिन सत्संगति दुर्लभ संसारा... विषय पर बोल रहे थे। बनारस के पं. मानसदीन शुक्ल, पं. राकेश पाठक, पं. रमाशंकर दीक्षित ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन पं. असितकुमार शुक्ल ने किया।