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Sankashti Chaturthi Significance: आज है संकष्टी चतुर्थी, जानें क्या है इस व्रत का महत्व

Sankashti Chaturthi Significance आज संकष्टी चतुर्थी है। आज का दिन प्रथम पूज्य गणेश जी को समर्पित होता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 06:30 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 08:04 AM (IST)
Sankashti Chaturthi Significance: आज है संकष्टी चतुर्थी, जानें क्या है इस व्रत का महत्व
Sankashti Chaturthi Significance: आज है संकष्टी चतुर्थी, जानें क्या है इस व्रत का महत्व

Sankashti Chaturthi Significance: आज संकष्टी चतुर्थी है। आज का दिन प्रथम पूज्य गणेश जी को समर्पित होता है। मान्यता है कि गणेश जी के पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। व्यक्ति पर गणपति बप्पा का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। अगर व्यक्ति इस व्रत को करता है कि उसे हर तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी का महत्व।

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संकष्टी चतुर्थी का महत्व: यह संकष्टी चुतर्थी पितृपक्ष के महीने में पड़ी है। भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। व्यक्ति पर गणपति बप्पा का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। गणेश जी को बुद्धि का देवता माना गया है। साथ ही वे विवेक के दाता भी हैं। अगर उनकी पूजा-अर्चना विधिपूर्वक और सच्चे मन से की जाए तो व्यक्ति के सभी दुख खत्म हो जाते हैं। यही कारण है कि इन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से घर से नकारात्मका दूर होती है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करना जरूरी होता है।

भविष्य पुराण के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। वहीं, गणेश पुराण के अनुसार, यह व्रत करने से सौभाग्य, समृद्धि और संतान का सुख प्राप्त होता है। ऐसे में शाम को चंद्रमा निकलने से पहले एक बार गणपति बप्पा की उपासना करें और फिर संकष्टी व्रत की कथा पढ़ें। इसके बाद ही व्रत का पारण करें।

संकष्टी चतुर्थी की कथा: एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे हुए थे। इसके समाधान के लिए वो शिवजी के पास गए। उनकी मदद करने के लिए शिवजी ने कार्तिकेय और गणेश जी से पूछा कि उन दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। दोनों ने खुद को ही बेहतर बताया। लेकिन शिवजी ने दोनों की परीक्षा ली। उन्होंने कहा कि जो भी धरती की पूरी परिक्रमा कर वापस आएगा वो ही देवताओं के कष्टों का निवारण करेगा। जहां कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर पर बैठकर परिक्रमा करने निकल पड़े। वहीं, गणेश जी ने सोच-विचार के बाद अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा कर ली।

जब कार्तिकेय जी परिक्रमा कर वापस लौटे तो उन्होंने खुद को विजेता बताया। तब शिवजी ने श्री गणेश से धरती की परिक्रमा न करने का कारण पूछा। तब गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। इससे प्रसन्न होकर देवताओं के संकटों के निवारण के लिए शिवजी ने गणेश जी को कहा। उन्होंने गणेश जी को आशीर्वाद भी दिया कि चतुर्थी के दिन जो भी उनकी उपासना करेगा और चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी । 


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