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Vinayak Chaturthi 2021: श्री गणेश क्यों कहलाए एकदंत? पढ़ें यह रोचक कथा

भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूज्य माना गया है किसी भी शुभ कार्य से पहले इनको पूजा जाता है। आज विनायक चतुर्थी पर हम आपको बताएंगे कि गणेश जी के एकदंत नाम के पीछे कौन सी कथा प्रचलित है।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 02:00 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 02:00 PM (IST)
श्री गणेश क्यों कहलाए एकदंत? पढ़ें यह रोचक कथा

 Vinayak Chaturthi 2021: आज विनायक चतुर्थी है। भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूज्य माना गया है। किसी भी शुभ कार्य से पहले इनको पूजा जाता है। मास के प्रत्येक चतुर्थी और हर बुद्धवार को श्री गणेश की पूजा होती है। चतुर्थी व्रत भक्तों के जीवन में सुख और शांति लेकर आता है। गणेश जी को बहुत सारे नामों से जाना जाता है। जैसे गजानन, लंबोदर, गणपति, विघ्हर्ता और एकदंत भी कहा जाता है। इन नामों के अपने मतलब हैं, जिनके पीछे कोई न कोई कथा जरूर प्रचिलत है। आज विनायक चतुर्थी पर हम आपको बताएंगे कि गणेश जी को एकदंत नाम के पीछे कौन सी कथा प्रचलित है।

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एकदंत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, आप सभी को पता होगा कि एक बार बचपन में बाल गणेश ने अपने पिता भोलेनाथ को माता पार्वती के पास जाने से रोक दिया था। कुछ इसी तरह की घटना एक बार परशुराम और गणेश जी के साथ हुई। एक बार परशुराम जी शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पर जा रहे थे, लेकिन गणेश जी ने उन्हें वहां जाने से रोका लिया। उस समय परशुराम जी ने कर्तवीर्य अर्जुन का वध किया था और वो अपने आराध्य भगवान शिव का दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे थे। वो शिव जी से मिलने के लिए उतावले हो रहे थे, परंतु गणेश जी थे कि मानने को तैयार नहीं थे।

जब गणेश जी ने उन्हें रोका, तो वो बेहद क्रोधित हो गए और शिव के दर्शन की आतुरता ने उन्हें युद्ध के अग्नि में झोक दिया। गणेश जी और परशुराम जी के बीच युद्ध का आरंभ हो गया। भीषण लड़ाई के उपरांत गणेश जी ने उन्हें परास्त कर दिया। हार से परेशान होकर मजबूरी में उन्होंने गणेश के ऊपर शिव जी के दिए फरसे का इस्तेमाल कर दिया। पिता का फरसा होने की वजह से गणेश जी ने सम्मान किया और फरसा गणेश जी के एक दांत पर लगा, जिससे उनका बायां दांत टूट गया।

  टूटे दांत के दर्द से वो कराहने लगे, उनकी पीड़ा सुनकर माता पार्वती कैलाश पर्वत से वहां पहुंची। पुत्र की अवस्था देखकर माता गुस्से से दुर्गा स्वरुप में आ गईं, जिसे देखकर परशुराम को अपने भूल का एहसास हुआ। क्षमा याचना के बात माता पार्वती ने उन्हें माफ किया। परशुराम ने गणेश को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया। इस घटना के बाद से ही वो एकदंत कहलाने लगे।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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