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Ramadan 2023: नहीं हो पाया रमजान के चांद का दीदार, अब जुमे से होगी रोजे की शुरुआत

Ramadan 2023 इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो रमजान के महीने में पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की आयतें खुदा से मिली थी। इसके लिए लोग रमजान महीने में रोजा रखकर खुदा की इबादत और शुक्रिया अदा करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarThu, 23 Mar 2023 11:58 AM (IST)
Ramadan 2023: नहीं हो पाया रमजान के चांद का दीदार, अब जुमे से होगी रोजे की शुरुआत
Ramadan 2023: नहीं हो पाया रमजान के चांद का दीदार, अब जुमे से होगी रोजे की शुरुआत

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Ramadan 2023: बुधवार यानी 22 मार्च को रमजान के चांद का दीदार न होने की वजह से अब रोजे की शुरुआत 24 मार्च से होगी। इसकी घोषणा ''इमारत-ए-शरिया हिंद" द्वारा की गई है। इस बारे में ''इमारत-ए-शरिया हिंद" की तरफ से जारी घोषणा में बताया गया है कि बुधवार को चांद का दीदार नहीं हो सका। इसके लिए जुमे से रोजे की शुरुआत होगी। इससे पहले बुधवार को चांद के दीदार के लिए शाम के समय में मुस्लिम इलाकों में गतिविधि बढ़ गई थी। लोग चांद के दीदार के लिए अपने-अपने छतों पर थे। हालांकि, चांद का दीदार न होने पर चांद कमेटी ने बैठक की। इसके बाद चांद कमेटी ने भी जुमे को रोजे की शुरुआत करने की घोषणा की। इसके लिए गुरुवार से ही मस्जिदों में तरावीह की नमाज अदा की जाएगी। आइए, रमजान महीने के बारे में मुख्य बातें जानते हैं-

क्या होती है सहरी ?

रमजान के महीने में रोजा के लिए रोजाना सूर्योदय से पहले फज्र की अजान के बाद सहरी ली जाती है। आसान शब्दों में कहें तो सूर्योदय से पहले भोजन करने के विधान को सहरी कहा जाता है। इसके लिए समय निर्धारित होता है। निर्धारित समय पर ही सहरी करनी होती है। इसके बाद दिनभर उपवास रखना होता है।

क्या होता है इफ्तार ?

रोजा खोलते समय खाए जाने वाले भोजन को इफ्तार कहा जाता है। इसमें खजूर खाकर रोजा खोलने का विधान है। रमजान के महीने में सही समय पर सहरी और इफ्तार करनी चाहिए। सहरी के बाद उपवास रखा जाता है। वहीं, इफ्तार के बाद भी रात में खाना खा सकते हैं।

क्यों है खास रमजान का महीना ?

इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो रमजान के महीने में पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की आयतें खुदा से मिली थी। इसके लिए लोग रमजान महीने में रोजा रखकर खुदा की इबादत करते हैं। इस महीने में पहले 10 दिन के रोजे को रहमत, दूसरे 10 दिन के रोजे को बरकत और तीसरे 10 दिन के रोजे को मगफिरत कहते हैं।

डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'