तीर्थ पुरोहितों पर सेना की भृकुटि टेंढ़ी
प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों पर सेना की भृकुटी टेढ़ी हो गई है। सप्ताह भर में उन्हें इस बात का प्रमाण जुटाकर सेना को देना है कि वह संगम तट पर कर्मकांड कराने का आधार रखते हैं। उनका एक प्रतिनिधि मंडल दल मंगलवार को छावनी परिषद की शरण लेगा। देखना यह है कि यहां से इन्हें आवश्यक प्रपत्र मिल पाता है या नहीं। सेना पांच दिन बाद क्या निर्णय लेती है।
इलाहाबाद। प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों पर सेना की भृकुटी टेढ़ी हो गई है। सप्ताह भर में उन्हें इस बात का प्रमाण जुटाकर सेना को देना है कि वह संगम तट पर कर्मकांड कराने का आधार रखते हैं। उनका एक प्रतिनिधि मंडल दल मंगलवार को छावनी परिषद की शरण लेगा। देखना यह है कि यहां से इन्हें आवश्यक प्रपत्र मिल पाता है या नहीं। सेना पांच दिन बाद क्या निर्णय लेती है।
पिछले कुछ दिनों से सेना के जवान संगम तट पर कर्मकांड के लिए बैठने वाले तीर्थ पुरोहितों (पंडों) को वहां से हटने को कह रही है। इस बारे में तीर्थ पुरोहितों के एक प्रतिनिधि मंडल दल ने सैन्य अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें बताया कि किस तरह उन्हें सेना के जवान अपमानित कर रहे हैं।
उल्टा सैन्य अधिकारियों ने उन्हें इस बात का प्रमाण देने का फरमान जारी कर दिया, कि संगम तट पर बैठने का पूर्व का कोई आदेश या प्रपत्र दिखाना होगा। इसके लिए उन्हें सिर्फ पांच दिन का समय दिया गया है। प्रयागवाल सभा के अध्यक्ष अजय पांडेय और महामंत्री राजेन्द्र पालीवाल का कहना है कि सैन्य अधिकारियों ने उन्हें मात्र सप्ताह भर का समय दिया है, जिसमें उन्हें साक्ष्य से संबंधित प्रपत्र जुटाना है। चेतावनी दी कि अगर उनकी परंपरा को क्षति पहुंचायी गई, तो तीर्थ पुरोहित समाज प्रदर्शन के लिए मजबूर होगा।
इस बारे में राज्यपाल और राष्ट्रपति से मिलकर समस्या से अवगत करायेंगे। इससे पहले प्रयागवाल सभा मंगलवार को छावनी परिषद जाकर अधिकारियों से मिलेंगे। वहां से उन साक्ष्य को जुटायेंगे, जिससे सेना संतुष्ट हो सके। इसके बाद आगे की रणनीति तय होगी। वहीं सेना इस बारे में किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से बच रही है।
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