Pauranik Kathayen: जानें कहां छिपा है गणपति बप्पा का असली शीश, ये दो कथाएं हैं प्रचलित
Pauranik Kathayen आज बुधवार है यानी गणेश जी का दिन। प्रथम पूज्य भगवान गणपति को गजानन भी कहा जाता है। क्योंकि उनका मुख हाथी जैसा है। इससे संबंधित भी कुछ कथाएं पुराणों में मौजूद हैं जिन्हें आपने कई बार सुना होगा।
Pauranik Kathayen: आज बुधवार है यानी गणेश जी का दिन। प्रथम पूज्य भगवान गणपति को गजानन भी कहा जाता है। क्योंकि उनका मुख हाथी जैसा है। इससे संबंधित भी कुछ कथाएं पुराणों में मौजूद हैं जिन्हें आपने कई बार सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि जब गणेश जी को हाथी का सिर लगाया गया तब उनका पूर्व मस्तक आखिर कहां गया। शायद आप में से कई लोगों ने इस बारे में नहीं सुना होगा। तो आइए जानते हैं इससे संबंधित कथा।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब गणेश का जन्म हुआ था तब उन्हें आशीर्वाद देने के लिए सभी देवी-देवता एकत्रित हुए थे। वहां पर शनिदेव भी आए थे। जैसा कि कहा जाता है कि शनिदेव की दृष्टि शुभ या मंगलकारी नहीं मानी जाती है। ऐसे में जैसे ही गणेश जी ने शनिदेव को देखा तो गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया। मान्यता है कि उनका मुख चंद्र मंडल में विलीन हो गया।
अन्य कथा के अनुसार, जब माता पार्वती स्नान करने के लिए गईं तब गणेश जी पहरा दे रहे थे। इसी दौरान शिवजी आए लेकिन गणेश जी ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इस बात पर शिवजी को बेहद क्रोध आया। गुस्से में आकर शिवजी ने गणेश जी का मस्तक काट दिया। मान्यता है कि इसके बाद गणेश का मस्तक चंद्रलोक में चला गया था।
चंद्रलोक में विद्यमान है गणेश जी का मस्तक:
ऐसा कहा जाता है कि गणेशजी का असली मस्तक आज भी चंद्रलोक में विद्यमान है। गणेश जी का सिर कटने के बाद उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया। कहा जाता है कि गणपति जी का गजमुख बेहद मंगलकारी है। इसमें सफलता के कई सूत्र छिपे हैं। अगर इनके दर्शन किए जाएं तो व्यक्ति के मन में प्रसन्नता का भाव रहता है।
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