Move to Jagran APP

Pauranik Katha: जब नारद जी ने जाना कि विष्णु जी को कौन है सर्वाधिक प्रिय

Pauranik Katha नारदजी एक बार वैकुण्ठ आए। वहां उन्होंने देखा कि विष्णु जी किसी चित्र को बनाने में मग्न है। विष्णु जी के आसपास शिव ब्रह्मा इत्यादि कई देवगण विष्णु जी का कृपाकटाक्ष पाने के लिए उत्सुक थे। लेकिन विष्णु जी को उनकी तरफ देखने की फुरसत ही नहीं थी।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 02:50 PM (IST)
Pauranik Katha: जब नारद जी ने जाना कि विष्णु जी को कौन है सर्वाधिक प्रिय
जब नारद जी ने जाना कि विष्णु जी को कौन है सर्वाधिक प्रिय

Pauranik Katha: नारदजी एक बार वैकुण्ठ आए। वहां, उन्होंने देखा कि विष्णु जी किसी चित्र को बनाने में मग्न है। विष्णु जी के आसपास शिव, ब्रह्मा इत्यादि कई देवगण विष्णु जी का कृपाकटाक्ष पाने के लिए उत्सुक थे। लेकिन विष्णु जी को उनकी तरफ देखने की फुरसत ही नहीं थी। चित्र बनाने में डूबे हुए विष्णु जी को नारद जी की तरफ देखे का भी समय नहीं था। विष्णु जी की तरफ से हो रहा यह व्यवहार नारद दी को एकदम पसंद नहीं आ रहा था। उन्हें बेहद अपमानित महसूस हो रहा था। गुस्से में वे श्री हरि के पास गए और उनके पास खड़ी लक्ष्मी जी से उन्होंने पूछा, "आज इतनी तन्मयता के साथ विष्णु जी किसका चित्र बना रहे हैं?"

loksabha election banner

लक्ष्मी जी ने कहा, "अपने सबसे बड़े भक्त का, आपसे भी बड़े भक्त का!" उन्होंने पास जाकर देखा तो वो आश्चर्य से अचंभित हो गए। विष्णु जी ने एक मैले-कुचैले अर्धनग्न मनुष्य की तस्वीर बनाई थी। यह देख नारद जी को और भी क्रोध आ गया। वे वापस भूलोक चले गए। कई दिन तक उन्होंने भ्रमण किया। उन्होंने इस दौरान देखा कि एक अत्यन्त गंदी जगह पर पशु-चर्मों से घिरा एक चर्मकार था जो गंदगी और पसीने से लथपथ चमड़ों के ढेर को साफ कर रहा था।

जब नारद जी ने उसे देखा तो उन्हें लाग कि विष्णु जी इसी की तस्वीर बना रहे थे। उस व्यक्ति में से इतनी दुर्गंध आ रही थी कि नारद जी उनके पास नहीं जा पाए। वे अदृश्य हो गए और दूर से ही उसे देखने लगे। सुबह से शाम हो गई लेकिन वो चर्मकार न तो मंदिर गया और न ही आंख मूंदकर भगवान का स्मरण किया। यह देख नारद जी को क्रोध आ गया। उन्हें लगा कि विष्णु जी ने चर्मकार को उनसे श्रेष्ठ बताकर उनका अपमान किया है। जैसे-जैसे रात होने लगी वैसे-लैसे नारद जी के मन की अस्थिरता भी बढ़ने लगी।

यह देख विष्णु जी को श्राप देने के लिए नारद जी ने अपनी बाहु उठाई लेकिन इतने में ही लक्ष्मी जी ने उनका हाथ पकड़ लिया। लक्ष्मी जी ने कहा, "देव! भक्त की उपासना का उपसंहार तो देख लीजिए। इसके बाद जो करना हो वो कीजिएगा।" उस चर्मकार ने सभी चमड़ों को समेटा और एक गठरी में बांध दिया। फिर एक कपड़ा लिया और खुद को पोछा। फिर गठरी के सामने झुककर कहा, "प्रभो! दया करना। कल भी ऐसा ही काम देना कि पूरे दिन पसीना बहाकर तेरी दी हुई इस चाकरी में पूरा दिन गुजार दूं।" यह देख नारद जी को यकीन हो चला कि वह चर्मकार विष्णु को क्यों सबसे ज्यादा प्रिय है!! इसका सीधा अर्थ यह है कि जिस व्यक्ति ने अपनी आजीविका को ही प्रभु माना था और वह अपने काम में तल्लीन होकर काम कर रहा है वो उनको बेहद प्रिय है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.