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Paryushan Parv 2021: विकृतियों को जीतने का पर्व, जानें इसके दस लक्षण

Paryushan Parv 2021 पर्युषम पर्व क्रोध मान माया लोभ आदि विकारों से बचकर संयमपूर्वक धर्म की आराधना करने का अवसर देता है। यह पर्व हमारे जीवन के परिवर्तन में कारण बन सकता है। यह हमारी आत्मा की कालिमा को धोने का काम करता है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Tue, 31 Aug 2021 09:28 AM (IST)Updated: Tue, 31 Aug 2021 09:28 AM (IST)
Paryushan Parv 2021: विकृतियों को जीतने का पर्व, जानें इसके दस लक्षण
Paryushan Parv 2021: विकृतियों को जीतने का पर्व, जानें इसके दस लक्षण

Paryushan Parv 2021: पर्युषम पर्व क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारों से बचकर संयमपूर्वक धर्म की आराधना करने का अवसर देता है। यह पर्व हमारे जीवन के परिवर्तन में कारण बन सकता है। यह हमारी आत्मा की कालिमा को धोने का काम करता है। विकृति का विनाश और विशुद्धि का विकास इस पर्व का ध्येय है। दस दिन चलने वाले इस पर्व में प्रतिदिन धर्म के एक अंग को जीवन में उतारने का प्रयास किया जाता है। इसलिए इसे दसलक्षण पर्व भी कहा जाता है। जिन दस धर्मों की आराधना की जाती हैं वे इस प्रकार हैं :

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1. उत्तम क्षमा : उत्तम क्षमा की आराधना से पर्युषण पर्व का आरंभ होता है। सहनशीलता का विकास इसका उद्देश्य है। सभी के प्रति क्षमाभाव रखना।

2. उत्तम मार्दव,: चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना। सभी के प्रति विनयभाव रखना।

3. उत्तम आर्जव : भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना, वही करना। छल, कपट का त्याग करना। कथनी और करनी में अंतर नहीं करना।

4. उत्तम शौच : मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति घटाना। न्याय नीति पूर्वक कमाना।

5. उत्तम सत्य : सत्य बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना। प्रिय और अच्छे वचन बोलना।

6. उत्तम संयम : मन, वचन और शरीर को काबू में रखना। संयम का पालन करना। मन तथा इंद्रियों पर काबू रखना।

7. उत्तम तप : मलिन वृत्तियों को दूर करने के लिए तपस्या करना। तप का प्रयोजन मन की शुद्धि है।

8. उत्तम त्याग : सुपात्र को ज्ञान, अभय, आहार और औषधि का दान देना तथा राग-द्वेषादि का त्याग करना।

9. उत्तम आकिंचन : अपरिग्रह को स्वीकार करना।

10. उत्तम ब्रह्मचर्य : सद्गुणों का अभ्यास करना और पवित्र रहना। चिदानंद आत्मा में लीन होना।।

आज भौतिकता की अंधी दौड़ में यह पर्व जिंदगी को जीने का नया मार्ग प्रशस्त करता है। यह पर्व हमारी चेतना पर सुसंस्कार डालता है आत्मजागरण में सहायक बनता है। इस पर्व का महत्व त्याग के कारण है, आमोद-प्रमोद का इस पर्व में कोई स्थान नहीं है। संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को तिलांजलि देने का यह अपूर्व अवसर होता है।

श्वेतांबर परंपरा के जैन मतावलंबी 3 से 10 सितंबर तक व दिगंबर परंपरा के मतावलंबी इसे 10 से 19 सितंबर तक यह महापर्व मनाएंगे। संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र पर्व पर जिनेन्द्र भगवान की पूजा, अभिषेक, शांतिधारा, विधान, जप, उपवास, प्रवचन श्रवण आदि दस दिन तक किया जाता है। जैन मंदिरों को सजाया जाता है। कठिन व्रत नियमों का पालन किया जाता है।

डॉ. सुनील जैन 'संचय', जैन संस्कृति के अध्येता


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