ईद का दिन नए प्राण और एक नई चेतना के साथ जीवन शुरू करने का दिन है
रोज़े के माध्यम से सद्गुणों को निखारने का महीना है रमज़ान, तो ईद मानवीय हितों के लिए ़खुद को समर्पित कर देने की शुरुआत का दिन है
रोज़े के माध्यम से सद्गुणों को निखारने का महीना है रमज़ान, तो ईद मानवीय हितों के लिए ़खुद को समर्पित कर देने की शुरुआत का दिन है...
रमज़ान का महीना रोज़े का महीना है और उसके बाद 1 शव्वाल को ईद का दिन है। एक महीने तक रोजे की
कठिन तपस्या के बाद मुसलमान आज़ादी के साथ खाते-पीते हैं। ख़ुदा का शुक्र अदा करते हुए सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ते हैं। वे समाज के सभी लोगों से मिलकर ख़ुशी मनाते हैं। दान (फ़ितरा) के ज़रिये समाज के ़गरीब
लोगों की मदद करते हैं। ईद का मुख्य उद्देश्य ख़ुदा को याद करते हुए अपनी खुशियों के साथ लोगों की खुशियों में शामिल होना है।
रोज़े का महीना आत्मविश्लेषण का महीना है, जबकि ईद का दिन नए प्राण और एक नई चेतना के साथ जीवन शुरू करने का दिन है। ईद का दिन एक नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने का दिन है।
रोज़ा वास्तव में तैयारी का अंतराल है। उसका उद्देश्य यह है कि इंसान बाहर देखने की बजाय अपने अंतर्मन की तरफ ध्यान दे। अपने में वे गुण पैदा करे, जो जीवन के संघर्ष में उसके लिए ज़रूरी हैं और जिनके बिना वे जीवन में अपनी भूमिका उपयोगी ढंग से नहीं निभा सकते। मसलन सब्र करना, अपनी सीमा का उल्लंघन न करना, नकारात्मक मानसिकता से बचना। इन गुणों को प्राप्त करने के बाद ईद का त्योहार मनाकर जीवन के नए दौर का शुभारंभ करना है। रोज़े ने आदमी के अंदर जो उत्कृष्ट गुण पैदा किए हैं, उसका नतीजा यह होता है कि अब
वह इंसान समाज का ज़्यादा बेहतर सदस्य बन जाता है। अपने और दूसरों के लिए भी वह पहले से बेहतर इंसान बन जाता है। रोज़े में खाने-पीने के त्याग के बाद वह व्यापक मानवीय हितों के लिए अपनी इच्छाओं का त्याग करता है। रोज़े में वह अपनी इच्छाओं को रोकने पर राज़ी हुआ था, अब ईद के दिन वह अपने अधिकारों से ज़्यादा अपनी जि़म्मेदारियों पर नज़र रखने वाला बन जाता है। रोज़ा साल में एक महीने का मामला है, तो ईद साल के ग्यारह महीने का प्रतीक है।
रोज़े में वह सब्र, उपासना और अपने रब को स्मरण करने में व्यस्त रहता है, तो ईद अगले ग्यारह महीने में इन सबको कार्यान्वित करने का नाम है। रोज़ा अगर निजी स्तर पर जीवन की अनुभूति है, तो ईद सामूहिक स्तर पर
जीवन में शामिल होना है। रोज़ा अगर स्वयं को ख़ुदा के नूर से जगमगाने का अंतराल है, तो ईद दुनिया के इंसानों में इस रोशनी को फैलाने का नाम है।
एक हदीस में आता है कि जब हज़रत मुहम्मद साहब शव्वाल के महीने का चांद देखते तो कहते, ‘ए मेरे रब, इस चांद को शांति का चांद बन दे’, यानी ईद का असल मक़सद इंसान में आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना तो है ही, परंतु इसका बड़ा लक्ष्य एक शांतिमय समाज की स्थापना की तरफ अग्रसर होना है।