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Motivational: मेंढ़क नहीं, बैल बनिए, सिर्फ पढ़ना काफी नहीं, समझिए

Motivational गुरुवार का दिन मतलब कि मां सरस्वती को नमन करने का दिन। सरवस्ती का जहां वास हो गया तो मानिए कि दुनिया उस शख्स की मुरीद होना तय है। स्कूल में पढ़ाते तो सैंकड़ों टीचर्स हैं लेकिन बच्चे पढ़ना किसी किसी ही टीचर से चाहते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 02:54 PM (IST)
Motivational: मेंढ़क नहीं, बैल बनिए, सिर्फ पढ़ना काफी नहीं, समझिए
मेंढ़क नहीं, बैल बनिए, सिर्फ पढ़ना काफी नहीं, समझिए

Motivational: गुरुवार का दिन मतलब कि मां सरस्वती को नमन करने का दिन। सरवस्ती का जहां वास हो गया तो मानिए कि दुनिया उस शख्स की मुरीद होना तय है। स्कूल में पढ़ाते तो सैंकड़ों टीचर्स हैं लेकिन बच्चे पढ़ना किसी किसी ही टीचर से चाहते हैं। आपने खुद ने सुना होगा बच्चे आपस में कहते नजर आते हैं कि वो सर जो पढ़ाते हैं ऐसा समझ आता है कि दोबारा पढ़ने की जरूरत ही नहीं होती।

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खैर आज गुरुवार को हमारे मोटिवेशनल सैगमेंट में हम दुनिया के महान शिक्षकों ने शिक्षा को लेकर क्या कहा है उस पर बात करेंगे। उदयशंकर भट्ट कहते हैं कि संतान को पढ़ा लिखा कर फिर अपनी इच्छा पर चलाना चाहने का मतलब है स्वयं दी हुई अपनी शिक्षा-दीक्षा को अमान्य करना। स्वयं अपने को अमान्य करना क्योंकि 20 वर्ष में मां बाप संतान को स्वतंत्र विचार करना भी न सिखा सके तो उन्होंने उसे क्या सिखाया?

शिक्षण और संस्कृति पुस्तक का अधय्यन करेंगे तो उसमें बड़ी सारगर्भित बात मिलेगी। उसमें लिखा है- शिक्षा तो एक साधन मात्र है, यदि उसके साथ सच्चाई, दृढ़ता शांति आदि गुणों का सम्मिश्रण नहीं होती तो वह शिक्षा अधूरी है।

खलील जिब्रान कहते हैं मेंढ़क संभव है बैलों की अपेक्षा अधिक शोर करें किन्तु न तो वो खेतों में हल जोत सकते हैं, न ही कोल्हू के चक्र को हिला सकते हैं। न उनकी चमड़ी के जूते बन सकते हैं। यही अंतर शिक्षित और अशिक्षित व्यक्ति में आप मान सकते हैं।

पूरी दुनिया के दिमाग से जाले हटा देने वाले तपस्वी स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं जो तुम्हारे मस्तिष्क में ठूंस दिया गया है। शिक्षा वो है जो तुम आत्मसात करते हो। गणेश शंकर विद्यार्थी के शब्द हैं- जो शिक्षा हमें प्राचीन संस्थाओं तथा प्राचीन विचारों में ही बांधे रखे, वह शिक्षा अर्वाचीन समय में शिक्षा कहलाने योग्य नहीं है। 


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