चंद्रमा को अर्घ्य देने के पीछे वास्तविक रूप से मन को मन से जोड़ने का भाव छिपा है
मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें सीधे नहीं देखी जाती हैं, उसके मध्य किसी पात्र या छलनी द्वारा देखने की परंपरा है क्योंकि चंद्रमा की किरणें अपनी कलाओं में विशेष प्रभावी रहती हैं। जो लोक परंपरा में चंद्रमा के साथ पति-पत्नी के संबंध को उजास से भर देती हैं। चूंकि
मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें सीधे नहीं देखी जाती हैं, उसके मध्य किसी पात्र या छलनी द्वारा देखने की परंपरा है क्योंकि चंद्रमा की किरणें अपनी कलाओं में विशेष प्रभावी रहती हैं। जो लोक परंपरा में चंद्रमा के साथ पति-पत्नी के संबंध को उजास से भर देती हैं। चूंकि चंद्र के तुल्य ही पति को भी माना गया है, इसलिए चंद्रमा को देखने के बाद तुरंत उसी छलनी से पति को देखा जाता है। इसका एक और कारण बताया जाता है कि चंद्रमा को भी नजर न लगे और पति-पत्नी के संबंध में भी मधुरता बनी रहे।
खूब सजाते है करवे
दरअसल 'करक चतुर्थी' लोकभाषा में 'करवा चौथ' कही जाती है। इस सौभाग्य व्रत की पूजा में मिट्टी के बने टोटींदार करवे यानी करक (कुल्लड़ के आकार का) से चौथ के चंद्रमा को अर्घ्य देना प्रमुख है। आजकल करवों को खूब सजाया जाता है।
तरह-तरह से बांधनी वाले, मोतियों की लड़ियों से करवों की खूबसूरती अलग ही हो जाती है। पूजा के लिए करवे के मुंह पर कलावा बांधना सबसे शुभ माना जाता है। टोंटी में चार सीकें लगाते हैं। दीये के ऊपर काले तिल, जौ और पैसे रखते हैं।
मन को मन से जोड़ने का भाव
चंद्रमा को अर्घ्य देने के पीछे वास्तविक रूप से मन को मन से जोड़ने का भाव छिपा है। कहा जाता है कि हमारा मन चंचल है मगर चांद अपनी शीतलता के कारण जाना जाता है। यही वजह है कि इसी शीतलता के जरिए मन को नियंत्रित करने के लिए अर्घ्य देना शुभ होता है।
वैसे भी ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का नियंत्रक कहा गया है। मन हर वक्त बुद्धि पर बल डालता रहता है और बुद्धि परास्त हुई तो दाम्पत्य जीवन कलह से घिर जाता है। इसलिए चांद और उसकी चांदनी का इतना महत्व है।