एक समय था जब दिल्ली से चांद की तस्दीक लिखकर आती थी, तब मनती थी ईद
पूरे देश में बड़ी धूमधाम से ईद मनाई जा रही है। सभी लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दे रहे हैं। एक समय था जब दिल्ली से चांद की तस्दीक लिखकर आती थी।
अल्लाह का करते हैं शुक्रिया
मुसलमानों का त्योहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सेंवईंयां इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।
दिल्ली से आती थी चांद की तस्दीक
पुराने समय में टेक्नोलॉजी का इतना विस्तार नहीं था। हर कोई चांद देखने की भरपूर कोशिश करता था। चांद दिखने के बाद ही ईद मनाई जाती है। ऐसे में लोग इसकी तस्दीक के लिए दिल्ली जाते थे। और वहां से चांद की तस्दीक होना लिखवाकर लाते थे। तब ईद का ऐलान होता था और ईद का त्योहार मनाया जाता था। दिल्ली में जामा मस्जिद के शाही इमाम या दूसरे आलिम-ए-दीन चांद की तस्दीक होना लिखकर देते थे। फिर चांद कमेटी की बैठक के बाद चांद के दीदार और ईद का ऐलान किया जाता था।
नगाड़ा बजाकर किया जाता था एलान
कभी-कभी चांद दिखने में देरी हो जाती थी, तब तक सुबह हो जाती थी। तब लोगों को ईद की खबर नगाड़ा बजाकर दी जाती थी। शहर के कुछ जिम्मेदार लोग रिक्शे में बैठकर नगाड़ा बजाकर गली-गली घूमते थे और ईद का ऐलान किया जाता था। यह खबर सुनते ही लोग ईद की तैयारियों में मशगूल हो जाते थे। शुरू हो जाती थीं। बताते हैं कि रमजान के चांद के लिए 3-4 लोगों की गवाही को मान लिया जाता था, लेकिन ईद के चांद के लिए 8 से 10 लोगों की गवाही और सूचना को ही सत्य माना जाता था।